हिन्दू धर्म में चार धाम अत्यधिक पूजनीय माने जाते है एवं चार धाम यात्रा का आध्यात्मिक महत्व है और माना जाता है कि चार धाम की यात्रा करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज हम आपको विस्तार से बताएंगे चारों धाम के बारे में। यमुनोत्री धाम हिन्दू धर्म की आस्था के प्रमुख केंद्र चार धामों में पहला धाम है। यमुनोत्री धाम गढ़वाल हिमालय के उत्तरकाशी में स्थित है। इसकी समुद्रतल से ऊंचाई 3235 मीटर है। चार धाम का पहला पड़ाव होने के कारण यहां यात्रा के प्रारंभ में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। यमुनोत्री, यमुना नदी का उद्गम स्थल है, यमुना नदी बन्दरपूँछ के समीप स्थित कालिंद पर्वत के नीचे चंपासर ग्लेशियर से निकलती है। जिसके कारण यमुना को कालिंदी भी कहा जाता है। कालिंद सूर्य भगवान का दूसरा नाम है। इस प्रकार यमुना सूर्य की पुत्री हुई।
यमुनोत्री धाम से जुड़ी मान्यता | Mythology Behind Yamunotri
कहते हैं भगवान सूर्य की पत्नी की दो संतान थी यम और यमुना। यमुना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी तथा यमराज को मृत्यु लोक मिला। मान्यता है कि यमुना ने अपने भाई यमराज से भाईदूज के मौके पर वरदान मांगा कि जो भी व्यक्ति भाईदूज के दिन यमुना में स्नान करे उसे यम लोक न जाना पड़े इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी यमुना की पवित्र निर्मल जल धारा में स्नान करता है वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो कर मोक्ष को प्राप्त करता है।
जब यमुनोत्री में प्रकट हुई गंगा | Yamunotri-Gangotri Story
Yamunotri Gangotri Sangam
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि असित का आश्रम यमुनोत्री में स्थित था। उनका नित्य यह नियम था कि वह प्रत्येक दिन प्रातः कल स्नान के लिए गंगोत्री जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे वृद्धावस्था के कारण उनके लिए गंगोत्री के मार्ग के दुर्गम पर्वतों को पार करना मुश्किल हो गया तब मां गंगा ने अपना एक छोटा सा झरना असित ऋषि के आश्रम में प्रकट कर दिया। यह झरना आज भी वहां मौजूद है। कहते हैं कि गंगा तथा यमुना की जलधाराएं एक हो गई होती, यदि दोनों के बीच में दंड पर्वत न होता।
जब श्री हनुमान ने बुझाई पूँछ की आग | Lord Hanuman Story Related To Yamunotri
पौराणिक कथा के अनुसार जब त्रेतायुग में रावण ने माता सीता का हरण किया तथा हनुमान उन्हें ढूंढते हुए लंका पहुंचे तो रावण ने हनुमान जी की पूँछ में आग लगवा दी थी, लेकिन श्री हनुमान ने अपनी पूँछ में लगी आग से संपूर्ण सोने की लंका को जलाकर ख़ाक कर दिया था। तब लंका को जलाने के पश्चात भगवान हनुमान अपनी पूँछ की आग बुझाने के लिए यहां आये तथा यमुना के शीतल जल से अपनी पूँछ में लगी आग बुझाई। यही कारण है कि जिस पहाड़ी पर श्री हनुमान ने अपनी पूँछ की आग बुझाई थी उसे आज “बन्दरपूँछ” के नाम से जाना जाता है।
सूर्यकुंड का महत्त्व | Importance of Yamunotri Suryakunda

यमुनोत्री मंदिर के समीप एक गर्म जल की धारा का कुंड मौजूद है। कहा जाता है कि अपनी पुत्री यमुना को आशीर्वाद देने के लिए सूर्य भगवान ने स्वयं गर्म जलधारा का रूप धारण किया है। पहाड़ों के शिखर पर जमा देने वाली सर्दी में भी इस कुंड का पानी खौलता रहता है। यात्रा पर आये भक्तगण कपड़े में चावल और आलू को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं तथा अपने साथ ले जाते हैं।
निर्माण तथा जीर्णोद्धार | Construction & Renovation of Yamunotri
यमुनोत्री मंदिर के अधिकांश भाग का निर्माण राजा सुदर्शन शाह ने सन 1885 में कराया था। लेकिन भूकम्प के कारण एक बार यमुनोत्री धाम पूरी तरह तहस-नहस हो गया था। तब 19वीं शताब्दी में इसका पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया द्वारा कराया गया था। प्राचीन काल में हनुमान चट्टी से यमुनोत्री पहुंचने का मार्ग पगडंडी के रूप में अत्यंत दुर्गम तथा डरावना था जिसे दिल्ली के सेठ चांदमल द्वारा महाराजा नरेंद्रशाह को 50000 रुपये देकर सही करवाया था। मंदिर के वर्तमान स्वरूप के निर्माण का श्रेय गढ़वाल के राजा प्रताप शाह को जाता है।
कैसे पहुंचे यमुनोत्री| How To Reach Yamunotri
यमुनोत्री धाम पहुँचने के लिए आप हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून से बस या टैक्सी ले सकते हैं। यहां का नज़दीकी हवाई अड्डा (एयरपोर्ट) देहरादून का जॉली ग्रांट है। तथा नज़दीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। आप ऋषिकेश रेलवे स्टेशन तथा देहरादून एयरपोर्ट से टैक्सी या बस के द्वारा जानकी चट्टी तक पहुंच सकते हैं। यहां सड़क खत्म हो जाती है तथा यहां से आपको 6 किलो मीटर ट्रेकिंग करनी होगी। आप यहां से टट्टू या पालकी भी ले सकते हैं।