श्रीमद्भग्वाद् गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है – तस्मात्सर्वगतं ब्रम्हा नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठ्तम् अर्थात सर्वव्यापी परम अक्षर ॐ ब्रम्हा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित होते है |
सामवेद में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जो मनुष्य अग्नि में नियमित भलीभाँति होम करते है उन्हें उत्तम संतान, सद्बुद्धि और धन-धान्य की प्राप्ति होती है |
भगवान ब्रम्हा द्वारा यज्ञ का वर्णन 
जब मनुष्य की उत्पत्ति ब्रम्हा जी के द्वारा की गयी तो मनुष्य ने पाया कि उसके चारो ओर तो रोग, शोक, विपत्ति और कष्ट ही बिखरे पड़े थे | मनुष्य अपने चारो ओर कष्ट एवं विपत्ति देखकर घबरा गया और उसने अपने सृजनहार भगवान ब्रम्हा के सम्मुख जा कर अपने कष्टों का बखान किया और उनसे मुक्ती का उपाय पूछा | इस विषय में ब्रम्हा जी ने मनुष्य को समझाते हुए कहा – “हे मानव ! तुम यज्ञ करो और यज्ञ में देवताओं को आहुतियाँ प्रदान करो जिससे देवता संतुष्ट होंगे और तुम्हे धन, संपत्ति, बल और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देंगे |”
यज्ञ का फल निश्चित रूप से फलीभूत होता है | यज्ञ में आहुतियाँ डालते समय मन्त्रों का उच्चारण कर देवताओं का आवाहन किया जाता है और अंत में स्वाहा बोला जाता है | वास्तव में ‘स्वाहा’ अग्निदेव की पत्नी का नाम है | आहुति (हवन सामग्री) अग्नि को समर्पित करते समय अग्नि की पत्नी ‘स्वाहा’ को पुकारा जाता है ताकि उनकी क्रपा प्राप्त होने पर अग्निदेव भी सहज ही क्रपालु हो जाएं |
यज्ञ से जुड़े हैरान कर देने वाले वैज्ञानिक तथ्य
अगर यज्ञ की विशेषताओं की बात की जाए तो यह केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं बल्कि विज्ञान भी है | अमेरिका में यज्ञ पर कई शोध किये गए है जिसका मानव जीवन पर कल्याणकारी प्रभाव देख वैज्ञानिक भी हैरान रह गए | यज्ञ पर शोध के पश्चात जो वैज्ञानिकों ने पाया है उसे अच्छी तरह जाने और लोगों तक पहुचाएं |
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