क्रन्तिकारी संत : तरुण सागर जी महाराज (26 जून, 1967-1 सित.2018 ) | tarun-sagar-ji-maharaj
आस्तिक परिवार की ओर से क्रांतिकारी संत श्री तरुण सागर जी महाराज को विनम्र श्रद्धान्जलि उनका शरीर भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके वचन या कहें कड़वे प्रवचन हम और हमारी आने वाली पीड़ी के जीवन, आचरण और व्यवहार को सदा मधुर बनाते रहेंगे |
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज केसु शिष्य मुनि तरुण सागर जी महाराज के कड़वे प्रवचन भारत ही नहीं अपितु समूचे विश्व में प्रसिद्ध हैं। सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर तीखे शब्दों में अपनी राय देने वाले संत श्री अपने प्रवचनों में हमेशा हिंसा का रास्ता छोड़ने का आह्वान करते थे। कड़वे वचनों और असाधारण भाषा शैली ने उनकी अन्य संतों से अलग विशिष्ट पहचान बना दी थी। महाराज श्री ने नई पीढ़ी के धार्मिक आचरणों और आध्यात्मिकता से दूर रहने पर अनेकों बार चिंता जतायी। उनका बूचड़खानों को लेकर कड़ा रुख रहता था। सरकार से भी बूचड़खानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात करते थे। साथ ही सभी को अहिंसा के रास्ते पर चलने की सलाह जरूर देते थे।
तरुण सागर जी लोक संत थे
तरुण सागर महाराज जैन समाज के ही नहीं बल्कि जन-जन के संत थे। वह सभी को प्रिय थे। दिगंबर मुनि क्या हैं, वह पहली हम सभी ने मर्तबा क्रांतिकारी संत मुनि तरुण सागर जी से जाना। हर धर्म का वह बारीकी से विश्लेषण करते थे। क्रांतिकारी विचारों वाले संतश्री धीर गंभीर और कोमल हृदय के थे।
तरुण सागर : संक्षिप्त जीवनी
जैन मुनि तरुण सागर का जन्म मध्य प्रदेश के दमोह में 26 जून, 1967 को हुआ था. उनका जन्म का नाम पवन कुमार जैन था | उनकी मां का नाम शांतिबाई और पिता का नाम प्रताप चंद्र था | तरुण सागर ने आठ मार्च, 1981 को घर छोड़ दिया था. इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ में दीक्षा ली |
इनके प्रवचन की वजह से इन्हें ‘क्रांतिकारी संत’ का तमगा मिला हुआ है। इन्हें 6 फरवरी 2002 को म.प्र. शासन द्वारा’ राजकीय अतिथि ‘ का दर्जा मिला। 2 मार्च 2003 को गुजरात सरकार ने उन्हें ‘राजकीय अतिथि’ के सम्मान से नवाजा। ‘तरुण सागर’ ने ‘कड़वे प्रवचन’ के नाम से एक बुक सीरीज स्टार्ट की है, जिसके लिए वो काफी चर्चित रहते हैं।
तरुण सागर पीलिया से पीड़ित थे और दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल से अपना इलाज करवा रहे थे. बताया जा रहा है कि वे संथारा प्रथा का पालन कर रहे थे और उन्होंने दवाइयां लेने से इंकार कर दिया था.
जैन संप्रदाय के लोग संथारा प्रथा के तहत अन्न-जल छोड़ देते हैं, इसका लक्ष्य जीवन को ख़त्म करना होता है जैन संप्रदाय की मान्यता के अनुसार इस तरह ‘मोक्ष’ प्राप्त किया जा सकता है.
उनके कुछ प्रसिद्द कड़वे प्रवचन | tarun-sagar-ji-maharaj Kadwe Pravachan.
* तुम्हारी वजह से जीते जी किसी की आंखों में आंसू आए तो यह सबसे बड़ा पाप है। लोग मरने के बाद तुम्हारे लिए रोए, यह सबसे बड़ा पुण्य है। इसीलिए जिंदगी में ऐसे काम करो कि, मरने के बाद तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए किसी और को प्रार्थना नहीं करनी पड़े। क्योंकि दूसरों के द्वारा की गई प्रार्थना किसी काम की नहीं है।
*गुलाब कांटों में भी मुस्कुराता है। तुम भी प्रतिकूलता में मुस्कुराओ, तो लोग तुमसे गुलाब की तरह प्रेम करेंगे। याद रखना कि जिंदा आदमी ही मुस्कुराएगा, मुर्दा कभी नहीं मुस्कुराता और कुत्ता चाहे तो भी मुस्कुरा नहीं सकता, हंसना तो सिर्फ मनुष्य के भाग्य में ही है। इसीलिए जीवन में सुख आए तो हंस लेना, लेकिन दुख आए तो हंसी में उड़ा देना।
*एक आदमी ने ईश्वर से पूछा- आपके प्रेम और मानवीय प्रेम में क्या अंतर है? ईश्वर ने कहा- आसमान में उड़ता पंछी मेरा प्रेम है और पिंजरे में कैद पंछी मानवीय प्रेम है। प्रेम में अद्भुत शक्ति है। किसी को जीतना है तो आप उसे तलवार से नहीं, प्यार से ही जीत सकते हैं। तलवार से उसे आप हरा सकते हैं, पर उससे जीत नहीं सकते हैं।
* जब भी जिंदगी में संकट आता है, तो सहनशक्ति पैदा करो। जो सहता है वही रहता है। जीवन परिवर्तन के लिए सुनने की आदत डालो। सुनना भी एक साधना है। चिंतन बदलो तो सबकुछ बदल जाएगा। इससे रंग नहीं, तो कम से कम जीने का ढंग तो बदल ही सकता है।
* परिवार के किसी सदस्य को तुम नहीं बदल सकते। तुम अपने आपको बदल सकते हो, यह तुम्हारा जन्मसिद्घ अधिकार भी है। पूरी दुनिया को चमड़े से ढंकना तुम्हारे बस की बात नहीं है। अपने पैरों में जूते पहन लो और निकल पड़ों फिर पूरी दुनिया तुम्हारे लिए चमड़े से ढंकी जैसी ही होगी। मंदिर और सत्संग से घर आओ, तो तुम्हारी पत्नी को लगना चाहिए कि बदले-बदले मेरे सरकार नजर आते हैं।
* जीवन में शांति पाने के लिए क्रोध पर काबू पाना सीख लो। जिसने जीवन से समझौता करना सीख लिया वह संत हो गया। वर्तमान में जीने के लिए सजग और सावधान रहने की आवश्यकता है।
* जिसके भाग्य में जो लिखा है, उसे वही मिलेगा और परेशान होने से कुछ अतिरिक्त प्राप्त नहीं होने वाला। सर्वोच्च सत्ता ईश्वर के ही हाथ में है। अत: यदि वह आपसे नाराज है तो दुनिया की कोई ताकत आपकी मदद नहीं कर सकती।
* यदि कोई आपको गालियां देता है और आप उसे स्वीकार नहीं करते तो वह गालियां उसी के पास रह जाती हैं। कोई आपको कुत्ता कहता है तो आप उसे भौंकें नहीं बल्कि मुस्कुराएं। गालियां देने वाला स्वयं ही शर्मिन्दा हो जाएगा। अन्यथा सचमुच कुत्ता बन जाओगे।
* दान को छपा-छपाके नहीं, बल्कि छिपा-छिपाके देना चाहिए। दान और स्नान गुप्त होना चाहिए, क्योंकि गुप्त दान पुण्य की वृद्धि और समृद्धि लाता है। दो चीजों को कभी मत भूलना। एक भगवान और दूसरी मौत। भगवान को याद करोगे तो मृत्यु याद आए न आए कोई बात नहीं, लेकिन मृत्यु को याद करोगे तो भगवान जरूर याद आएंगे। उन्होंने कहा कि दो चीजों को जरूर भूलो, बुरा व्यवहार करने वाले को और दूसरे के साथ परोपकार करके भूल जाओ।
*घर में शांति चाहिए, तो दिमाग को ठंडा, जेब को गरम, जुबान को नरम, आंखों में शर्म, दिल में रहम रखो। आज के आदमी के दिमाग में आइस फैक्ट्री और मुख में शुगर फैक्ट्री हो तो जिंदगी के वारे-न्यारे हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि आदमी को गृहस्थ धर्म के बाद वानप्रस्थ आश्रम को अपनाना चाहिए, क्योंकि वन बनने की प्रयोगशाला है। जो वन गया सो बन गया। जो भवन में अटक गया, वो लटक गया।
*जहां प्राण जाएं, घट वह है मरघट। जहां आदमी के शव को जलाया जाए, वह श्मशान होता है। दुनिया में एक मरघट ही है, जहां व्यक्ति अपनी मर्जी से नहीं जाता। उसे बांधकर ले जाना पड़ता है। घर में रहो पर श्रद्धा सही बनाओ। आदमी जिंदगी भर तो धन-धन करता रहता है, जबकि मरने के बाद शोक पत्रिका में निधन रह जाता है।