ताड़केश्वर मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple) उत्तराखंड में मौजूद भगवान शिव के धामों में से एक प्रमुख धाम है। ताड़केश्वर मंदिर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले के लैंसडाउन में स्थित है। यह मंदिर समुन्द्र तल से 2092 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर 5 किलो मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें इसे बलूत तथा देवदार के पेड़ों ने घेरा हुआ है। ताड़केश्वर मंदिर के पास कई पानी के झरने भी बहते हैं। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में भगवान शिव के ताड़केश्वर रूप की पूजा साल में चार बार की जाती है।
इस मंदिर के अंतर्गत आस पास के तक़रीबन 76 गांव आते हैं जो फ़सल होने पर सबसे पहले फ़सल का एक भाग मंदिर में भगवान को अर्पित करते हैं तब उसके बाद ही उस फसल का प्रयोग स्वयं करते हैं। इस मंदिर में सरसों का तेल और कंदार (शॉल) प्रतिबंधित है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। जिसमें दूर दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। तथा भगवान ताड़केश्वर से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए अर्जी लगाते है।
पौराणिक कथा | Story Behind Tarkeshwar Mahadev Temple

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में ताड़कासुर नामक एक राक्षस था जो भगवान शिव का भक्त था। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए तथा उससे वरदान मांगने को कहा तब ताड़कासुर ने भगवान शिव से अमर होने का वरदान मांगा। तब भगवान शिव ने उसे अमरता के अलावा दूसरा वरदान मांगने को कहा | तब ताड़कासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगते हुए कहा कि भगवान् मेरी मृत्यु सिर्फ आपके पुत्र के हाथों ही हो | उसका सोचना था की भगवान् शिव तो वैरागी है और वे न कभी विवाह करेंगे और न कभी उनका कोई पुत्र होगा और न ही कभी उसकी मृत्यु होगी |
इसके पश्चात ताड़कासुर धरती पर आतंक मचाने लगा। वह बिना वजह संतों को मारने लगा। तब संत भगवान शिव की शरण में गये। भगवान शिव ने बताया कि उस राक्षस को बस मेरा पुत्र मार सकता है। देवताओं के प्रयास से शिव ने पार्वती से शादी की तथा दोनों का जो पुत्र हुआ कार्तिकेय और फिर उन्होंने ही ताड़कासुर का वध किया |
क्यों पड़ा ताड़केश्वर नाम | Why It Called As Tarkeshwar Mahadev Temple
मान्यता है कि प्राचीन काल में जब कार्तिकेय ताड़कासुर का वध करने के लिए चले तभी ताड़कासुर ने भगवान शिव से प्रार्थना की तथा उनसे क्षमा मांगने लगा। तब भगवान शिव ने ताड़कासुर को क्षमा कर दिया तथा यह वरदान भी दिया कि कलयुग में तुम लोगों द्वारा मेरे नाम से ही पूजे जाओगे और हुआ भी ऐसा ही, वर्तमान में ताड़कासुर भगवान शिव के नाम से ताड़केश्वर में पूजा जाता है।
माता पार्वती बन गईं थी देवदार के वृक्ष|

ताड़कासुर के वध के बाद भगवान् शिव और माता पार्वती ने इस स्थान पर विश्राम किया। भगवान शिव यहां गर्मी में बैठे थे। जब माता पार्वती ने देखा कि भगवान शिव पर सूर्य की धूप पड़ रही है। तो वह यहां देवदार के वृक्षों का रूप धारण करके भगवान शिव को धूप से बचाने के लिए उनके पास खड़ी हो गईं।
माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड|Importance of Tarkeshwar Mahadev Temple
ताड़केश्वर महादेव मंदिर में जो कुंड मौजूद है उसके बारे में एक मान्यता है कि मंदिर का कुंड माता लक्ष्मी द्वारा खोदा गया है। इस कुंड का जल बहुत पवित्र माना जाता है। इस कुंड के जल से ही मंदिर में मौजूद भगवान शिव के शिवलिंग का जलाभिषेक होता है।
कैसे पहुंचे ताड़केश्वर महादेव मंदिर | How To Reach Tarkeshwar Mahadev Temple
सड़क मार्ग से –
ताड़केश्वर महादेव मंदिर अच्छी तरह से सड़क मार्ग से जुड़ा है। मंदिर पहुँचने के लिए आपको बस या टैक्सी द्वारा लैंसडाउन से गुंडलखेत गांव पहुँचना होगा। वहां से मंदिर केवल 1 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग से –
ताड़केश्वर महादेव मंदिर का नज़दीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से 70 किलो मीटर दूर है। आप स्टेशन से बस या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग से –
ताड़केश्वर मंदिर का नज़दीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट है जो मंदिर से 177 किलो मीटर दूर है आप बस या टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं।