Tapkeshwar Mandir: टपकेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून बस स्टैंड से महज 5.5 किलो मीटर की दूरी पर एक प्रवासी नदी के मुहाने पर स्थित है। यह मंदिर एक प्राचीन प्रसिद्ध सिद्धपीठ भी है।

टपकेश्वर मंदिर एक गुफ़ा रूपी मंदिर है। जिसके अंदर स्वयम्भू शिवलिंग विराजमान है। टपकेश्वर मंदिर गुरु द्रोणाचार्य की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर में शिव जी दो शिवलिंग स्थापित हैं जिनमें से एक शिवलिंग स्वयम्भू तथा दूसरा शिवलिंग रुद्राक्ष से जड़ा हुआ है। यहाँ श्रद्धालुओं को दोनों शिवलिंगों के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। टपकेश्वर मंदिर के प्रांगण में बनी हनुमान जी की विशाल मूर्ति है जिसके कारण मंदिर की पहचान दूर से ही हो जाती है।
क्यों पड़ा टपकेश्वर नाम|Reason Behind The Name Tapkeshwar Mandir
टपकेश्वर मंदिर की महिमा बहुत निराली है। यह मंदिर उत्तराखंड के सबसे सिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के नामकरण को लेकर भी एक अदभुत कथा है। इस मंदिर का टपकेश्वर नाम इसलिए पड़ा क्योंकि मंदिर की गुफा में विराजमान स्वयम्भू शिवलिंग के ऊपर चट्टानों से पानी की बूंदें खुद टपकती रहती हैं, जो कभी नहीं रुकती इसलिए इस मंदिर का नाम टपकेश्वर महादेव पड़ा है।
पौराणिक कथा|
Tapkeshwar Mandir Katha : एक पौराणिक कथा के अनुसार टपकेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन काल में देवताओं का निवास स्थान था | यहां रहकर देवता भगवान शिव का ध्यान लगाया करते थे और भगवान शिव की पूजा अर्चना किया करते थे। एक बार जब भगवान शिव देवताओं की पूजा अर्चना से प्रसन्न हुए तो उन्होंने इस मंदिर में साक्षात भू-मार्ग से प्रकट होकर देवताओं को देवेश्वर के रूप में दर्शन दिये थे। देवताओं को दर्शन देने के पश्चात भगवान शिव जी ने ऋषि मुनियों को भी दर्शन दिये थे। तब से यह मंदिर एक महान तीर्थ स्थल के रूप में पूजनीय है। यह मंदिर इस स्थान पर अनादि काल से है। तथा भगवान शिव यहां देवेश्वर तथा टपकेश्वर के नाम से शिवलिंग रूप में विराजते हैं जिसका वर्णन केदारखण्ड तथा स्कन्दपुराण में भी किया गया है।
द्रोणाचार्य की तपस्थली
टपकेश्वर महादेव मंदिर गुरु द्रोणाचार्य की तपस्थली रही है। इसी स्थान पर भगवान शिव की तपस्या करके गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शिव से धनुविद्या का ज्ञान प्राप्त किया था। इस लिहाज़ से यह स्थान बेहद पवित्र माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार द्रोणाचार्य अपनी भारत यात्रा के समय इस स्थान पर आये तथा उन्होंने एक ऋषि से भेंट की तथा उन्होंने भगवान शिव के दर्शन प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ऋषि ने उन्हें इच्छा पूरी करने के लिए ऋषिकेश जाने को कहा। जब द्रोणाचार्य ऋषिकेश के लिए निकले तो उन्हें रास्ते में इस स्थान पर शिवलिंग दिखा। यह शिवलिंग पहाड़ी की गुफ़ा में स्वयम्भू था जहां द्रोणाचार्य को भगवान शिव के दर्शन हुए।
अश्व्थामा को मिला था अमर होने का वरदान
एक कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्व्थामा ने दूध हेतु इसी गुफ़ा में भगवान शिव की एक पैर पर खड़े रहकर 6 महीने तक तपस्या की थी। अश्व्थामा की यह तपस्या पूर्णमासी के दिन पूर्ण हुई थी तथा इस दिन गुफ़ा में विराजमान शिवलिंग के ऊपर दूध की धार बहने लगी थी। तथा अश्व्थामा ने भगवान शिव के चरणों से दूध ग्रहण करके अपनी प्यास बुझाई थी।
भगवान शिव ने इस तपस्या से प्रसन्न होकर ही अश्व्थामा को अमर होने का वरदान दिया था। तथा कलयुग में इस दूध का ग़लत इस्तेमाल होने के कारण भगवान शिव नाराज़ हो गये तथा उन्होंने दूध की इस धारा को जल की धारा में बदल दिया है तथा आज भी इस जल की बूंदें शिवलिंग पे टपकती रहती हैं।
कैसे पहुंचे|How To Reach Tapkeshwar Mandir
सड़क मार्ग से-
टपकेश्वर महादेव मंदिर अच्छी तरह से सड़क मार्ग से जुडा है मंदिर पहुंचने के लिए आपको देहरादून पहुंचना होगा। जिसके लिए देश के प्रमुख शहरों से नियमित बस सेवा उपलब्ध है। देहरादून बस स्टैंड से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से –
टपकेश्वर महादेव मंदिर का नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से महज़ 7 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। आप रेलवे स्टेशन पहुंच कर बस या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग से-
टपकेश्वर महादेव मंदिर का नज़दीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट है जो मंदिर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आप एयरपोर्ट से बस या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
टपकेश्वर महादेव मंदिर अच्छी तरह से सड़क मार्ग से जुडा है मंदिर पहुंचने के लिए आपको देहरादून पहुंचना होगा। जिसके लिए देश के प्रमुख शहरों से नियमित बस सेवा उपलब्ध है। देहरादून बस स्टैंड से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर पहुंचा जा सकता है।