क्यों माना गया है स्वस्तिक का चिन्ह इतना शुभ और क्यों इसको करते है प्रतिष्ठित हर शुभ कार्य के पहले

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स्वस्तिक का महत्व 

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हम सब ने अक्सर यह देखा है कि किसी भी धार्मिक और शुभ कार्य करते समय स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है | लेकिन क्या आपने कभी यह जानना चाहा कि सनातन धर्म में स्वस्तिक के चिन्ह की इतनी महत्वता क्यों बताई गयी है और इसे अत्यंत शुभ क्यों माना जाता है ? तो आइये आज हम इस बिंदु पर प्रकाश डालते हुए आपको स्वस्तिक के चिन्ह से जुड़े रोचक तथ्य से अवगत कराते है |

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गणेश पुराण के अनुसार स्वस्तिक के चिन्ह को भगवान गणेश का स्वरूप बताया गया है | सभी मांगलिक कार्यो में इसकी स्थापना अनिवार्य रूप से बताई गयी है | स्वस्तिक चिन्ह में सभी प्रकार के विघ्न-बाधा और अमंगल दूर करने की शक्ति निहित होती है | जो भी व्यक्ति स्वस्तिक चिन्ह को प्रतिष्ठित किये बिना किसी धार्मिक कार्य का आरम्भ करता है तो उसे अनेक विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है | इसी कारण से किसी भी मंगल कार्य के आरम्भ में ही स्वस्तिक चिन्ह बनाकर स्वस्तिवाचन किया जाता है | स्वस्तिवाचन में निम्न श्लोक का उच्चारण किया जाता है –

स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः |

स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो वृहस्पतिदर्धातु ||

इसका अर्थ यह है कि युक्त देवराज इंद्र हमारा कल्याण करें | विश्व के ज्ञानस्वरूप पूशा देव अपने ज्ञान से हमारा कल्याण करें | भगवान गरुण देव जिनके हथियार अरिष्ट भंग करने में समर्थ है हमारी रक्षा करें और देव गुरु वृहस्पति हमारे घर में कल्याण की प्रतिष्ठा करें |

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