सुरकंडा देवी मंदिर शक्तिपीठ जहाँ प्रसाद में दिए जाते हैं पत्ते | Surkanda Devi Temple

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Surkanda Devi

सुरकंडा देवी (Surkanda Devi) मंदिर हिन्दू धर्म की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले के जौनपुर में सुरकूट पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर धनोल्टी तथा कानाताल नामक स्थान के मध्य स्थित है। सुरकंडा मंदिर पहुँचने के लिए चंबा-मसूरी रोड पर कद्दूखाल कस्बे से ढाई किलो मीटर पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है। सुरकंडा देवी मंदिर माता दुर्गा के रूप देवी सुरकंडा को समर्पित है। इस मंदिर की ऊंचाई समुन्द्र तल से 2510 मीटर है। यह मंदिर एकदम पहाड़ की चोटी पर स्थित है। सुरकंडा देवी मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 52 शक्तिपीठों में से एक है।

Surkanda Devi Temple

इस मंदिर का वर्णन केदारखण्ड तथा स्कन्दपुराण में भी किया गया है। सुरकंडा देवी के अलावा मंदिर में भगवान शिव तथा हनुमान आदि की मूर्तियां भी स्थापित हैं। जड़धारगांव जो की चंबा प्रखंड में है सुरकंडा देवी का मायका माना जाता है। इस गांव के लोग विभिन्न अवसरों पर माँ के दर्शन तथा आराधना करने के लिए आते हैं। स्थानीय लोगों की मंदिर में विशेष आस्था है। तथा वे विभिन्न अवसरों पर देवी की आराधना तथा पूजा अर्चना करते हैं। उनका मानना है कि माँ सुरकंडा उनकी रक्षक हैं तथा उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण करती हैं।

प्रसाद में दी जाती हैं पत्तियां | Surkanda Devi Temple Prasad

Surkanda Devi Mandir

सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह है कि मंदिर में दर्शन हेतु आये भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं। रौंसली का वानस्पतिक नाम टेक्सस बकाटा है। माना जाता है कि रौंसली की पत्तियों में विशेष औषधीय गुण होते हैं जिससे भक्तों को कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मितली है। तथा यह भी मान्यता है कि इनको घर में रखने से घर में सुख समृद्धि आती है। इसलिए इस वृक्ष को यहां देववृक्ष का दर्जा हासिल है। तथा इस वजह से रौंसली की लकड़ियों को यहां इमारती तथा अन्य व्यावसायिक कार्यों में प्रयोग नहीं किया जाता है।

देवताओं को दिलाया वापस स्वर्ग | Story Behind Surkanda Devi Temple

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राक्षसों ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया था। तब सभी देवता भयभीत हो उठे। वह इस सब के समाधान हेतु माता सुरकंडा की शरण में गये। तथा सभी देवताओं ने माता सुरकंडा की आराधना की । माँ उनसे प्रसन्न आराधना से प्रसन्न हुई तो देवताओं ने माँ सुरकंडा से प्रार्थना की कि उन्हें उनका राज्य वापस प्राप्त हो जाये। माता ने उन्हें वरदान दिया कि ऐसा ही होगा। इसके बाद सभी देवताओं ने असुरों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। जिसमें उन्होंने असुरों को स्वर्ग से खदेड़ दिया अर्थात असुरों को परास्त कर दिया तथा पुनः स्वर्ग पर अपना राज स्थापित कर लिया।

मेला का आयोजन | Surkanda Devi Temple Festival

माता सुरकंडा देवी मंदिर में प्रत्येक वर्ष नवरात्रि तथा गंगा दशहरा के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में बड़ी संख्या में भक्तगण उपस्थित होते हैं तथा माता की पूजा अर्चना करते हैं। कहा जाता है इस अवसर पर माता अपने भक्तों को खाली हाथ नहीं लौटाती, वह उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। इस लिए यहां हर साल भक्तों का जमावड़ा लगता है।

मनमोहक नज़ारे | Sight View From Surkanda Devi Temple

माता सुरकंडा देवी का मंदिर 2510 मीटर की ऊंचाई पर सुरकूट पर्वत पर स्थित है। इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के कारण मंदिर से बहुत ही मनमोहक नज़ारों के दर्शन होते हैं। मंदिर से आप एक तरफ केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री तथा गंगोत्री की पहाड़ियों की चोटियों के दर्शन कर सकते हैं तो दूसरी ओर देहरादून तथा ऋषिकेश दोनों शहरों को देख सकते हैं। मंदिर से इन नज़ारों के दर्शन एक अलग ही आकर्षण पैदा करते हैं।

कैसे पहुंचे | How To Reach Surkanda Devi Temple

सड़क मार्ग से –

सुरकंडा देवी मंदिर पहुँचने के लिए आप को मसूरी पहुंचना होगा, वहां से आपको कद्दूखाल जाना होगा जो मसूरी से महज 40 किलो मीटर दूर है। कद्दूखाल से पैदल सुरकंडा देवी के लिए चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी।

रेल मार्ग से-

सुरकंडा देवी मंदिर का नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन है। जो मंदिर से 67 किलो मीटर दूर है। आप रेलवे स्टेशन पहुंच कर बस या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग से-

सुरकंडा देवी मंदिर का नज़दीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट है जो मंदिर से केवल 100 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। आप एयरपोर्ट से बस या टैक्सी द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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