जप-तप एवं धार्मिक कर्मकांड करते समय आसन का चुनाव सही होना चाहिए नहीं तो लाभ की जगह हानि होती है

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साधक के जीवन में आसन का महत्व

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हम सब ने यह देखा है कि जप, ताप एवं धार्मिक कर्मकांड करते समय आसन पर बैठना अति आवश्यक बताया गया है किन्तु क्या आपको इससे जुड़ा तथ्य पता है | मित्रों सनातन धर्म में जो भी बातें वेद, शास्त्रों और पुराणों के माध्यम से आवश्यक बताई जाती है वह पूरे ठोस तथ्य के साथ प्रस्तुत की जाती है | अगर आवश्यकता होती है तो इन तथ्यों को जानने की, तो आज हम आपको इस मान्यता से जुड़ा तथ्य बताते है |

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जप-ताप और धार्मिक कर्मकांड से साधक आध्यात्मिक उर्जा की प्राप्ति करता है | जप-तप आदि करते समय साधक जिस आसन पर बैठता है, वह विधुत का कुचालक होता है अर्थात आसन का साधक को यह लाभ मिलता है कि जब साधना से वह अपने अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा को संग्रहित कर लेता है तो उर्जा-तरंगे उसके शरीर से निकल कर भूमि में नही जाएगी | आसन न होने पर उसकी उर्जा-तरंगे भूमि पर चली जाती है और साधना से अर्जित की हुई शक्ति व्यर्थ हो जाती है | इसी कारण साधक कोई भी साधना करते समय आसन पर अवश्य बैठता है |

साधक अपनी साधना विशेष के अनुसार ही अलग-अलग प्रकार के आसनों का प्रयोग करते है | काले हिरन और बाघ का चर्म, कुशाशन, लाल कंबल और गोबर का उपयोग साधक प्राचीन काल से ही करते आ रहे है | ज्ञानियों द्वारा बताया गया है कि काले हिरण के चर्म से बने आसन पर साधना करने से ज्ञान की प्राप्ति, बाघ के चर्म से बने आसन पर साधना करने से मोक्ष की प्राप्ति, कुश के आसन पर साधना करने से मंत्रों की सिद्धि और लाल कंबल के आसन पर साधना करने से मनोनुकूल फल की प्राप्ति होती है |

सावधानी रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें 

अपारम्परिक और अनियमित आसनों का प्रयोग करने से साधक को लाभ की जगह हानि उठानी पड़ सकती है | इसके विषय में ब्रम्हांड पुराण तंत्रसार में प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि भूमि में बिना कोई आसन का उपयोग के साधना करने पर दुःख और कलेश, पत्थर के आसन पर बैठने से रोग, पत्तों के आसन पर बैठने से चित्तभ्रम, घास-फूस के आसन पर बैठने से अपयश, कपड़े के आसन पर बैठने से तपस्या भंग जैसी हानि, बांस के आसन पर बैठने से दरिद्रता और लकड़ी के आसन पर बैठने से दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है |

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