यह बात तो सबको पता ही हैं या सब किसी ना किसी तरीके से जानते ही हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल या मंदिर में प्रणाम और भगवान के दर्शन करने के बाद परिक्रमा की जाती है। मगर बहुत कम लोग ही होंगे जो इसके पीछे की वास्तविकता (benefits of temple orbiting) से रूबरू होंगे। वैसे आप तो जाते ही होंगे तो क्या आपने वहाँ एक चीज़ गौर की हैं?

आपने देखा अलग अलग पुराने मंदिरो में क्या वो एक चीज़ है जो समान हैं हर जगह! कभी आपने सोचा है कि हर प्राचीन मंदिर में कुआं या कोई तालाब क्यों होता है? क्या कभी इस बात पर विचार किया है कि हम परिक्रमा क्यों लगाते हैं और यह परिक्रमा गीले कपड़ो में ही क्यों ख़ास मानी जाती? कभी सोचा है कि यह परिक्रमा एक खास दिशा में ही क्यों होती है? इन सबके पीछे का कारण कभी ढूँढा हैं? नहीं ढूंढा तो कोई बात नहीं, इस लेख में हम इन्हीं पहलुओं पर बात करेंगे।
परिक्रमा का क्या अर्थ है ?
संस्कृत का एक शब्द हैं “प्रदक्षिणा” जिसका अर्थ है परिक्रमा करना। हिंदू पूजा पद्धति में देवी-देवता की परिक्रमा करने का विधान है। इसलिए मंदिरों में परिक्रमा पथ बनाए जाते हैं। सिर्फ देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, तुलसी समेत अन्य शुभ प्रतीक पेड़ों के अलावा, नर्मदा, गंगा आदि की परिक्रमा भी की जाती है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति को भी साक्षात देव समान माना गया है।
ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों प्रा और दक्षिणा में विभाजित किया गया है। इस शब्द में मौजूद प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा, यानी परिक्रमा का अर्थ हुआ दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे बाईं ओर गर्भगृह में विराजमान होते हैं। लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि प्रदक्षिणा को दक्षिण दिशा में ही करने का नियम क्यों बनाया गया है?
ऐसा माना जाता हैं कि परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में की जाती है। इस धरती पर यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अगर आप गौर से देखें तो पानी वाला नल खोलने पर पानी हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में मुडक़र बाहर गिरेगा। बात सिर्फ पानी की ही नहीं है, पूरा का पूरा सिस्टम इसी तरह काम करता है।
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परिक्रमा लगाने के फायदे | Benefits of Temple Orbiting
अगर कोई शक्ति स्थान है और आप उस स्थान की ऊर्जा को ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में उसके चारों ओर परिक्रमा लगानी चाहिए। जब आप घड़ी की सुई की दिशा में घूमते हैं तो आप कुछ खास प्राकृतिक शक्तियों के साथ घूम रहे होते हैं। कोई भी प्रतिष्ठित स्थान एक भंवर की तरह काम करता है, क्योंकि उसमें एक कंपन होता है और यह अपनी ओर खींचता है। दोनों ही तरीकों से ईश्वरीय शक्ति और हमारे अंदर के मन के बीच एक संपर्क स्थापित होता है। घड़ी की सुई की दिशा में किसी प्रतिष्ठित स्थान की परिक्रमा करना इस संभावना को ग्रहण करने का सबसे आसान तरीका है।
अगर आप ज्यादा फायदा उठाना चाहते हैं तो आपके बाल गीले होने चाहिए। इसी तरह और ज्यादा फायदा उठाने के लिए आपके कपड़े भी गीले होने चाहिए। अगर आपको इससे भी ज्यादा लाभ उठाना है तो आपको इस स्थान की परिक्रमा नग्न अवस्था में करनी चाहिए। वैसे, गीले कपड़े पहनकर परिक्रमा करना नग्न हो कर घूमने से बेहतर है। इसका कारण यह है कि शरीर बहुत जल्दी सूख जाता है, जबकि कपड़े ज्यादा देर तक गीले रहते हैं। ऐसे में किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा गीले कपड़ों में करना सबसे अच्छा है, क्योंकि इस तरह आप उस स्थान की ऊर्जा को सबसे अच्छे तरीके से ग्रहण कर पाएंगे।
कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसे शांत करना आवश्यक हो जाता है। गृह शांति के लिए बहुत सारे शास्त्रीय उपाय है। ऐसा माना जाता हैं कि धार्मिक स्थल की परिक्रमा गीले कपड़ो में करने से अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलों (religious benefits of temple orbiting) में वृद्धि होती है।
परिक्रमा करने के कुछ खास नियम। Rules For Temple Orbiting
ऐसा भी माना जाता हैं कि मंदिर की परिक्रमा एक निश्चित संख्या में की जाती है, और बिना विधि विधान के की गई पूजा और परिक्रमा के कारण फल प्राप्ति में भी कमी आ सकती हैं। वही कई लोगो का कहना हैं कि भगवान के दर्शन व पूजा के बाद की गई परिक्रमा से ही पूजन का फल मिलता हैं और साथ में इसके प्रभाव से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं। आप सोच रहे होंगे कि अब ये अक्षय पुण्य क्या हैं तो आइये थोड़ा जानते हैं अक्षय पुण्य के बारे में !
हिंदू धर्म में तप, व्रत, दान और तीर्थ का विशेष महत्त्व हैं। जो व्यक्ति विधि-विधान से व्रत रखकर तप और दान-पुण्य करता है,उसे अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है। दान पुण्य और व्रत जैसे धार्मिक कार्यों के लिए सभी महीनों में वैशाख मास का विशेष स्थान है। वहीँ इस मास में पड़ने वाली अक्षय तृतीया को किया गया दान–पुण्य का फल सदैव अक्षय रहता है।
जैसा की आपको पता है कि गीले कपड़े पहन परिक्रमा का विधान शास्त्रों में भी बताया गया हैं। माना जाता हैं कि मंदिर में पहले से कुछ सकरात्मक ऊर्जा मौजूद रहती हैं और जब कोई भी गीले कपड़े पहन मंदिर की परिक्रमा करता हैं तो उसपर इस सकरात्मक ऊर्जा का सबसे ज्यादा असर होता हैं। लेकिन इसके साथ ऐसा भी माना जाता हैं कि गीले कपड़ो में परिक्रमा करने के बाद सकरात्मक ऊर्जा पा कर इंसान और फुर्तीला हो जाता हैं।
जैसा की हमने शुरुआत में बताया कि परिक्रमा भी एक निश्चित संख्या में ही करनी चाहिए। आइये जानते हैं की किसको कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
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क्या परिक्रमा लगाने की कोई निश्चित संख्या भी होती है ?
जिस प्रकार हिंदू धर्म में हर धार्मिक कार्य एक सम्पूर्ण विधि-विधान से होता है, ठीक इसी प्रकार से परिक्रमा करने के लिए भी नियम बनाए गए हैं। परिक्रमा किस तरह से की जानी चाहिए, कितनी बार की जाए यह सब जानना जरूरी है। तभी आपके द्वारा की गई परिक्रमा से आपको फल (benefits of temple orbiting) मिलता है। यहां हम आपको बताएँगे की देवी-देवता की परिक्रमा कितनी बार की जानी चाहिए ।
- आदि शक्ति के किसी भी स्वरूप की, मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां पार्वती, इत्यादि किसी भी रूप की परिक्रमा केवल एक ही बार की जानी चाहिए।
- भगवान विष्णु एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए।
- गणेश जी और हनुमान जी की तीन परिक्रमा करने का नियम है।
- शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए, क्योंकि शिवजी के अभिषेक की धारा को लांघना अशुभ माना जाता है।
पहले हर मंदिर में एक जल कुंड/तालाब/कुंआ क्यो होता था, जिसे आमतौर पर कल्याणी कहा जाता था। ऐसी मान्यता है कि पहले आपको कल्याणी में एक डुबकी लगानी चाहिए और फिर गीले कपड़ों में मंदिर भ्रमण करना चाहिए, जिससे आप उस प्रतिष्ठित जगह की ऊर्जा को सबसे अच्छे तरीके से ग्रहण कर सकें। लेकिन आज कल दिक्क्त यह है कि ज्यादातर कल्याणी या तो सूख गए हैं या गंदे हो गए हैं।