Pashupatinath Mandir | पशुपतिनाथ मंदिर से जुड़े रहस्य्मयी तथ्य एवं पौराणिक मान्यताएं ।

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पशुपतिनाथ | About Pashupatinath

पूरी दुनिया में यूँ तो भगवान शंकर के कई मंदिर प्रसिद्ध है मगर पूरी दुनिया में मात्र एक ही ऐसा मंदिर है जो एक ही नाम से दो जगह पर मौजूद है। और वो हैं पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Mandir), एक नेपाल के काठमांडू में और दूसरा भारत के मंदसौर में। आपको बता दें कि दोनों मंदिर के नाम के अलावा मंदिर में मौजूद मूर्तियां भी समान आकृति वाली ही है। आज हम यहां बात करेंगे नेपाल में मौजूद पशुपति नाथ मंदिर के इतिहास के बारे में और जानेंगे कि क्या है इस नेपाल के मंदिर की पौराणिक मान्यताएं ?

नेपाल कि धरती आध्यात्म कि खुशबू से भरी हुई हैं। नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Mandir) भी ऐसा ही एक आध्यात्मिक स्थान हैं। ऐसा माना जाता हैं कि भगवान शिव आज भी यहाँ विराजमान हैं। आमतौर पर जहाँ आपने शिव मंदिरो में एक मुँह वाला शिवलिंग देखा होगा मगर इस मंदिर में मौजूद हैं चार मुँह वाला शिवलिंग। नेपाल का यह विशाल मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है और इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहरों की सूची में भी शामिल किया गया है। मंदिर में भगवान शिव की चार मुंह वाली मूर्ति है। पशुपतिनाथ का चारों दिशाओं में एक मुख है।

प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमलदल मौजूद है। मान्यता अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस पत्थर के समान है। कहते हैं कि ये सारे मुंह अलग-अलग दिशा और गुणों का परिचय देते हैं। यह मंदिर इतना ज्यादा भव्य है कि यहां पर देश-विदेश से आये पर्यटको की हमेशा भीड़ लगी रहती हैं।

इस मंदिर का इतिहास जानने से पहले आइये जानते हैं कि आखिर पशुपति नाथ का अर्थ ? Meaning of Pashupatinath

पशुपति नाथ का संधि विच्छेद करेंगे तो अर्थ का पता लगेगा। यहाँ पशु का मतलब जीव या प्राणी हैं, पति का मतलब है स्वामी और नाथ का  मतलब हैं मालिक या भगवान। अब सबको एक साथ जोड़ के देखेंगे तो पशुपति नाथ का मतलब यह कि संसार के समस्त जीवों के स्वामी या भगवान को हम पशुपतिनाथ कहते हैं। पशुपतिनाथ का एक अर्थ जीवन का मालिक भी हैं।

आइये अब जानते हैं कि क्या है नेपाल में मौजूद इस भव्य पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास?

इस सृष्टि के जो आदि है और उन्हें इस सृष्टि का अंत भी माना गया है, उन्हें देवों के देव महादेव का एक रूप हैं पशुपतिनाथ।

ऐसा माना गया है कि यहां जो लिंग मौजूद हैं,वो धरती पर वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था। आपको बता दे कि पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के देवता रहे हैं। पाशुपत संप्रदाय द्वारा इस मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है, हाँ लेकिन कुछ जगह पर यह पता चलता है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।

बाद में इस मंदिर का दोबारा निर्माण लगभग 11वीं सदी में किया गया था। उसके बाद एक दफा दीमक की वजह से मंदिर को बहुत नुकसान हुआ, और इस वजह से  लगभग 17वीं सदी में उसको फिर से बनवाया गया। बाद में इस मंदिर की ही तरह दिखने वाले कई मंदिरों का निर्माण हुआ। ऐसे मंदिरों में भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के शुरुआत में) शामिल हैं। मूल पशुपतिनाथ मंदिर कई बार नष्ट हुआ है। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया। नेपाल में अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के कुछ बाहरी इमारतें को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। जबकि पशुपतिनाथ का जो मुख्य मंदिर हैं और जो मंदिर के बीच का हिस्सा है उसको  किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई।

आपको बता दे कि पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारत के ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था। बाद में माल्ला राजवंश के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे। आजकल भारतीय ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म कर नेपाली लोगों को पूजा का प्रभाव सौंप दिया गया।

इस मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात के 9 बजे तक है। केवल दोपहर के समय और शाम के पांच बजे ही मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है।वैसे मंदिर में जाने का सबसे सही समय सुबह सुबह जल्दी और देर शाम का है। और अगर पूरा मंदिर आपको घूमना हैं तो यह पूरा करने में 90 से 120 मिनट का समय लगेगा।

आइये अब जानते हैं इस मंदिर से जुड़े कुछ पौराणिक मान्यताओं के बारे में | Beliefs About Pashupatinath Mandir

  • पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Temple) के बारे में यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में आकर दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है। हालांकि शर्त यह है कि शिवलिंग से पहले नंदी के दर्शन न करे। यदि ऐसा करते है तो फिर अगले जन्म में पशु बनना पड़ता है।
  • वहाँ के लोगो का यह भी मानना है कि अगर कोई मंदिर के परिसर में  घंटा-आधा घंटा ध्यान करता है तो उसे कई प्रकार की समस्याओं से उसी वक़्त छुटकारा मिल जाता है।
  • एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव यहाँ पर चिंकारे का रूप धारण कर नींद में चले गए थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता है इस दौरान उनका सींग चार टुकड़ों में टूट गया और इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए।
  • कई लोग यह भी कहते हैं कि भारत के उत्तराखंड राज्य से जुडी एक पौराणिक मान्यता है। जिसके अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है, कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिवजी ने भैंसे के रूप में दर्शन दिए थे, जो बाद में खुद धरती में समा गए लेकिन उनके समाने से पहले ही भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस जगह  पर भीम ने इस काम को किया था उसे अभी के समय में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। और जिस स्थान पर भैंसे रूपी शिव का मुँह धरती से बाहर आया उसे आज पशुपतिनाथ कहा जाता है। पुराणों में पंचकेदार की कथा नाम से इस कथा का विस्तार से पता लगता हैं।

यह था नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का विस्तार में इतिहास और वहाँ की पौराणिक मान्यताओं का सच। वैसे यह मंदिर हिंदू मान्यताओं में काफी अहम और आदि शंकराचार्य परंपरा से जुड़ा हुआ माना जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर में शिवरात्रि के त्योहार को बेहद ही खास तरीके से मनाया जाता है तो अगर कभी आपको मौका मिले तो इस मंदिर को देखने व दर्शन करने ज़रूर जाए।

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