About Orchha Temple | ओरछा का मंदिर

हिंदुओं की आस्था के प्रतीक हैं भगवान श्रीराम और भारत में श्रीराम के अनेकों मंदिर हैं पर भारत में एक अनोखा राममंदिर है, जो मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के छोटे से शहर ओरछा (orchha) में स्थित है। न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया मे श्रीराम का ये एकमात्र मंदिर है जहाँ भगवान श्रीराम को राजा राम के रूप में पूजा जाता है और राजा राम सरकार कहा जाता है। ओरछा ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से काफी समृद्ध स्थान होने के कारण देश विदेश में प्रसिद्ध है।
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ओरछा का आकर्षण केंद्र | Orchha Tourism
यहाँ के नयनाभिराम महल, शीशमहल, विशाल किले, बेतवा नदी के किनारे पर बनी छतरियाँ और पास के वनों में उछल-कूद करते वन्यजीव विदेशी पर्यटकों के भी आकर्षण का केंद्र हैं। राजा राम मंदिर में वर्ष भर में लगभग 650000 स्वदेशी दर्शनार्थी और 25000 के लगभग विदेशी दर्शनार्थी आते हैं और प्रतिदिन के दर्शनार्थियों की संख्या लगभग 1500 से 3000 तक होती है। यहाँ सभी हिन्दू त्यौहारों विशेषकर बसन्त पञ्चमी, कार्तिक पूर्णिमा, राम नवमी और विवाह पंचमी पर विशेष रौनक रहती है।

ये मंदिर श्रीराम जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियों के लिए उत्तरभारत में भी विशिष्ट स्थान रखता है। यहाँ प्रभु श्रीराम पद्मासन में विराजित हैं जिनके दाएं हाथ मे तलवार और बायें हाथ मे ढाल है, जिनके बांई ओर माता सीता और दाहिने तरफ लक्ष्मण की प्रतिमा हैं। इन तीनों के दाहिनी ओर ही महाराज सुग्रीव, नृसिंह भगवान और माँ दुर्गा विराजमान हैं। माता सीता के चरणों मे हनुमानजी और जामवंत भी विराजित हैं। आज भी यहाँ सारे काम राजा राम की आज्ञा से होते है। इस मंदिर के नियमानुसार सुबह 8.30 बजे से 10 बजे तक कपाट खुले रहते हैं और रात में 10 बजे कपाट फिर खोले जाते हैं।
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ओरछा का इतिहास |Orchha History

जितना अनोखा ये मंदिर है उतना ही रोचक इसका इतिहास है। ये मंदिर पंद्रहवीं शताब्दी में बनाया गया था लगभग 444 वर्ष का इसका इतिहास है। इसकी चौखट पर जड़े शिलालेख पर लिखा है -” मधुकर शाह महाराज की महारानी कुँवर गणेश, अवधपुरी से ओरछा लाईं कुँवर गणेश”। सन 1554 से 1592 तक महाराज मधुकर शाह का राज्यकाल माना जाता है ।
ओरछा से जुडी कहानी | Orchha Story
प्रचलित कथा के अनुसार महाराज मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी महारानी गणेशकुँवरी श्री राम की अनन्य भक्त थीं, एक बार महाराज मधुकर शाह ने महारानी से वृंदावन चलने को कहा इस पर महारानी ने कहा कि वो श्रीराम के दर्शन हेतु अयोध्या जाना चाहतीं हैं इसलिए वृंदावन नही चल सकतीं, इस पर महाराज क्रोधित हो गए और क्रोधवश कह दिया कि इतनी ही भक्त हो राम की तो अपने आराध्य राम को यहाँ ओरछा क्यों नहीं ले आतीं। इस बात से महारानी ने मन में राम को ओरछा लाने का निश्चय किया और अयोध्या चली गईं। अयोध्या में लक्ष्मण किले के पास एक कुटिया बना कर वहाँ साधना करने लगीं|
ऐसा कहा जाता है कि उस समय संत शिरोमणि तुलसीदास जी भी वहीं रामचरितमानस का लेखन कर रहे थे, महारानी को उनका आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। परन्तु बहुत दिन बीत जाने पर भी जब श्रीराम के दर्शन नहीं हुए तो दुःखी होकर रानी ने सरयू में छलाँग लगा दी और सरयू की मझधार में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए। श्री राम से उन्होंने ओरछा चलने की बात की तो श्रीराम ने चलना तो स्वीकार किया परंतु तीन वचन लिए पहला यात्रा पैदल होगी साथ में कई साधु संत भी होंगे जो भजन कीर्तन करते जाएँगे, दूसरा यात्रा पुष्य से पुष्य नक्षत्र के मध्य होगी और तीसरा ये कि जहाँ भी एक बार मुझे विराजित किया फिर वहाँ से नहीं उठूंगा| महारानी ने सहर्ष मान लिया और ओरछा संदेश भिजवाया कि श्री राम को लेकर मैं ओरछा आ रही हूँ।

ऐसा संदेश सुनकर कि श्रीराम ओरछा आ रहे हैं महाराज ने भव्य चतुर्भुज मंदिर का निर्माण प्रारम्भ कर दिया। फिर जब रानी सरयू से बाहर आईं तो अयोध्या मंदिर के पुजारी ने बाबर के आक्रमण के पूर्व छुपा के रखी राम लक्ष्मण और जानकी की प्रतिमाएँ रानी को सौंप दी। उन्हें लेकर वचनानुसार विभिन्न साधु संतों के साथ भजन कीर्तन करते हुए वि.सँ. 1630 श्रावण शुक्ल पञ्चमी को अयोध्या से प्रस्थान किया और ठीक आठ माह 28 दिनों बाद चैत्र शुक्ल नवमी ,पुष्य नक्षत्र वि. सँ. 1631 अर्थात सोमवार सन 1574 में ओरछा पहुँची।
महारानी का मन था कि चूँकि राम का राज्याभिषेक नही हो पाया था और उन्हें वनवास मिला था और पिता दशरथ की मृत्यु हो गयी थी इसलिए श्री राम का राज्याभिषेक कर के किसी अच्छे मुहूर्त में मंदिर में स्थापित किया जाए इसलिए उस समय सोलह श्रृंगार कर के श्री राम को रानी ने महल में विराजित कर दिया जब स्थापना के लिए उन्हें वहाँ से उठाने के प्रयास किया गया तो कोई उन्हें हिला भी नहीं पाया क्योंकि श्रीराम बाल रूप में ओरछा आये थे तो अपनी माँ का महल छोड़कर भला कैसे जाते ऐसी अवस्था मे महल को ही मंदिर का रूप दिया और विवाह पञ्चमी के दिन विधि विधान से श्री राम का विवाह कर उन्हें धूम धाम से वहीं स्थापित कर उनका राजतिलक कर दिया गया और राजतिलक में उन्हें ओरछा नगरी भेंट की गई।
ऐसा माना जाता है कि जिस दिन ओरछा में राज्यभिषेक हुआ उसी दिन रामचरितमानस भी पूर्ण हुई। उत्तर भारत के धार्मिक क्षेत्रों सहित साधु संत समाज में तत्कालीन शासक मधुकर शाह और महारानी गणेशकुँवरी को दशरथ और कौशल्या के रूप में मान्यता दी। मंदिर की देखरेख और सेवा के लिए कुछ गाँव खरीदे उनकी मालगुजारी और प्राप्त आय मंदिर को भेंट की जाती थी इसी कारण ओरछा का राजा राम मंदिर सर्वाधिक धनी मंदिरों में गिना जाता है। आज भी सोने चाँदी के रत्नजड़ित आभूषण मंदिर में विशाल चार बक्सों में मंदिर की अकूत संपत्ति के रूप में जमा हैं।
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मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ|
Orchha Temple Myth

आज भी ओरछा के राजा राम मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएँ हैं। कहा जाता है कि कोई भक्त पूर्ण भाव और आस्था से अगर राजा राम के विग्रह के दर्शन करता है तो उसे उनकी पलकें झपकती हुई दिखती हैं। आज भी वहाँ राजा राम का शासन है ऐसे में कोई भी रिश्वतखोरी और भ्र्ष्टाचार करने से डरता है। मंदिर में बेल्ट पहनकर जाना निषिद्ध है क्यूंकि राजा के सामने कमर कस कर जाना राजा का अपमान माना जाता है। प्रशासन द्वारा राजा राम को सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सैनिकों द्वारा सलामी (गॉर्ड ऑफ ऑनर) दिया जाता है। राजा राम की रक्षा के लिए वहाँ सशत्र सैनिक प्रतिदिन सेवा देते हैं। ओरछा में उन्हें राजा राम सरकार कहा जाता है।
ओरछा के दो मुख्य त्यौहार | Important Festivals of Orchha
राम नवमी और मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को विवाह पञ्चमी का पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इन दोनों पर्वों पर राजा राम को महल से बाहर लाकर दालान में झूले पर विराजित किया जाता है जहाँ आम जन उनके दर्शन लाभ ले सकता है। विवाह पञ्चमी पर पान के बीड़े और इत्र की कली प्रसाद रूप में वितरित करने की परंपरा भी आदिकाल से चली आ रही है। यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों को राजा राम के दर्शन के साथ ही हनुमान जी के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त होता है क्योंकि राम मंदिर के चारों ओर उनकी सुरक्षा के लिए विभिन्न हनुमान मंदिर हैं जिनमे बजरिया के हनुमान, छड़धारी हनुमान और लंका के हनुमान जी प्रसिद्ध हैं।
यहाँ महल के पास ही दो मीनारें हैं जिन्हें सावन भादो की मीनारें कहा जाता है| हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सावन भादो के माह में ये मीनारें परस्पर जुड़ जाती हैं फिर अपने आप ही विलग हो जाती हैं| प्राचीन काल मे इन मीनारों के नीचे बने रास्ते को आने जाने के लिए प्रयोग किया जाता था किंतु अब इसे नीचे से बंद कर दिया गया है जिससे अब खोजबीन नहीं कि जा सकती है।
ओरछा कैसे पहुँच | How To Reach Orchha
देश के किसी भी हिस्से से ओरछा पहुँचना बहुत ही सुगम है क्योंकि ये झाँसी से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और झाँसी देश की सभी प्रमुख रेल लाइनों से जुड़ा है और यहाँ पर्यटकों के रुकने का शानदार विश्रामालय और आवासीय स्थान हैं। यहाँ बुंदेलखंड की प्राचीन कलाएं और किले तथा भ्रमण करने के लिए और भी कई रोचक दर्शनीय स्थान हैं।