माँ कालरात्रि – जो करती है भय एवं शत्रुओं का नाश, इस तरह है इनकी पूजा विधि और महत्व

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माँ दुर्गा का सातवा स्वरूप – माँ कालरात्रि 

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एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

नवरात्रि के पावन अवसर पर देवी के अलग-अलग रूपों की आस्था के साथ आराधना होती है | माँ दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है, अर्थात् जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही स्पष्ट है कि इनका रूप भयानक है।  सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। माँ का यह रूप काफी विकराल, भयावह किन्तु सदैव शुभ फल देने वाला है । इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है । उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।  कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के द्वार अपने-आप  खुलने लगते हैं और तमाम आसुरी शक्तियां माँ के नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत इनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। अंधकारमय परिस्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं-कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति हैं ।  सातवें दिन माँ दुर्गा के इसी शक्ति स्वरूप की पूजा होती है |

देवी माँ के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी साँसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ (गधा ) की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है तथा दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है, यानि भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है |ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।

देवी दुष्टों के लिए विनाशक हैं और भक्तों के लिए रक्षक का रूप धारण कर लेती हैं | माँ कालरात्रि का रूप देखकर ही दुष्टों की रूह कांप जाती है, लेकिन जो भी भक्त माता की सच्चे दिल से पूजा करता है, माता उनकी सारी मनेकामनाएं पूर्ण कर देती हैं | माँ कालरात्रि की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है । आज के दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में प्रवेश कर जाता है। आज की पूजा का आरंभ नीचे लिखे मंत्र से करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा

कहा जाता है तीनों लोकों में असुरों ने हाहाकार मचा रखा था | इससे सभी बेहद परेशान थे | जिसके लिए सभी देवतागण माँ दुर्गा के पास गए | तभी भगवान शिव ने माँ दुर्गा से सभी भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा | तब माँ दुर्गा ने अन्य रूप धारण कर असुर रक्तबीज का वध किया | माँ  दुर्गा के इसी रूप को माँ कालरात्रि कहा गया |

माँ कालरात्रि की पूजन विधि

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नवरात्रि की सातवें दिन की पूजा अन्य दिनों की पूजा से थोड़ी भिन्न होती है | इस दिन, रात के समय पूजा का विधान है | इस दिन कहीं-कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित की जाती है । सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है |

पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार सर्वप्रथम कलश की पूजा करनी चाहिए | इसके पश्चात माता कालरात्रि जी की पूजा । पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया करें । नवग्रह, दसों दिक्पाल,  देवी के परिवार में उपस्थित देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए, फिर माँ कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का अत्यधिक महत्व बताया गया है । इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी माँ का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु जुटने लगते हैं।

ध्यानमंत्र

करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामाँ तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

 स्तोत्र पाठ

हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

माँ कालरात्रि की पूजा का महत्त्व

कहते हैं माँ अपने भक्तों को कभी भी निराश नहीं करती हैं। नवरात्र के दिनों में माँ की सच्चे मन से पूजा की जानी चाहिए। लोग घट स्थापित करके माँ की उपासना करते हैं, जिससे प्रसन्न होकर माँ सर्वदा अपने बच्चों की रक्षा करती हैं।

 

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