क्या होता है दाहिना दिमाग ? कैसे करें ध्यान में इसका उपयोग ? meditation-technique
ज्यादातर लोगों को यही लगता है की ध्यान में बैठने से ज्यादा बोरिंग और उबाऊ काम और क्या हो सकता है ? बस एक ही जगह बैठे रहना बिना कुछ किये, बिना कुछ सोचे | और यह एक तरह से देखें तो सच भी लगता है |
सबसे पहले तो, जैसे ही हम बैठ के कुछ ना सोचने की कोशिश करते हैं, हम हार जाते हैं और होता उसका उल्टा ही है, हमारे दिमाग में विभिन्न प्रकार के विचार आने लगते हैं जैसे कि वो जो तुम्हारे पिताजी ने कोई पच्चीस साल पहले कहा था या वो पैसे जो तुम्हारा दोस्त गुल कर गया, या वह जो हर वक़्त बहाने मारता रहता है, या मकान मालिक पंखा कब ठीक करवाएगा या ये दुनिया कब खत्म होने वाली है आदि |
ये सारे विचार एक के बाद एक आते रहते हैं. एक विचार के बाद दूसरा, कभी कभी आपस में जुड़े हुए कभी कहीं का कहीं | पाँच बातें सोच के तुम सोचते हो कि मैं इस विचार पर आखिर पंहुचा कैसे और क्यूँ ? आप वहाँ क्यूँ पहुँचे इसका आसान सा जवाब है आपके सोचने वाले अंग की बेचैनी अर्थात आपके दिमाग की जिसे किसी बदमाश बच्चे की तरह हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहना है | और कई बार तो ये हमें उन विचारों में ले जाता है जहाँ हम अपने अस्तित्व के बारे में ही असमंजस में पड़ जाते हैं |
डेसकार्टेस इसमें थोडा गलत था जब वो कहता था “मैं सोचता हूँ, तभी मैं हूँ”. “हम हैं, चाहे हम सोचें या न सोचें”. सोचने के लिए जीवित रहना ज़रूरी है, जीवित रहने के लिए सोचना नहीं |
एक के बाद एक विचार, जिस तरह से हम ज्यादातर सोचते हैं और काम करते हैं, हमारे बाँए दिमाग का काम है, यानी की हमारे दिमाग का बाँया हिस्सा | इसका काम है बस सोचना, सोचना, सोचना, एक चीज़ को दूसरी से जोड़ते रहना, चाहे वो अच्छी हो या बुरी |
अक्सर, सबसे बढ़िया काम ये किया जा सकता है की हम हमारे दिमाग को इस तरह से तैयार कर लें कि ये उन चीज़ों पर ध्यान केन्द्रित करे जिसपे हम चाहते हैं. ऐसी चीज़ों पर जो हमें मदद करे, फायदा दे, जैसे कि किसी समस्या के निवारण पर, कोई अच्छी बात पर या किसी लक्ष्य पर जो हम अपने जीवन में पाना चाहते हों | सबसे आसान तरीका तो यह है कि अपने आप को यह कहने के लिए तैयार करें कि “इसके बारे में तो मुझे सोचना ही नहीं है” |
जब हम ध्यान करते हैं तब सबसे पहला काम तो यही होता है कि विचारों की अनंत रेल को महसूस करना और इस लगातार चलने वाली प्रक्रिया को रोकने की कोशिश करना या साइड में खड़े होकर उस रेल को जाने देना | यही सबसे अच्छा तरीका है इसे व्यक्त करने का, क्यूँकि जब बाँए दिमाग में यह रेल चल रही होती है, तब दांयाँ दिमाग उस रेल को चलते हुए देखने में लगा रहता है, | इसका काम होता है उन सब विचारों को जोड़ना |
दाहिने दिमाग का काम बहुत ही शांत ढंग से काम करना है | जब भी हम कहीं प्यार पाते हैं, किसी खूबसूरत चीज़ को देखते हैं, खुश होते हैं, एकांत में होते हैं या किसी गाने की प्यारी-सी धुन सुनते हैं तब हम अपने दिमाग के दाहिने हिस्से को काम में लेते हैं |
जैसे-जैसे हम ज्यादा ध्यान लगाते हैं, हम व्यर्थ के विचारों से ध्यान हटा सकते हैं और उन चीज़ों पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं जो हमें ख़ुशी और सुकून देती हैं, और जितना ज्यादा हो सके उसी में जियें | जैसे-जैसे हम इस अवस्था में ज्यादा वक़्त बिताने लगते हैं, वैसे ही हम ऊर्जा, बर्दाश्त करने की क्षमता और शांति पाते हैं और व्यर्थ के बेतुके विचारों से दूर होने लगते हैं |
जब हम वास्तविकता की अवस्था में होते हैं, तब हम वास्तविकता में ज्यादा जीते हैं और हमें अहसास होता है की ये अवस्था दूसरी अवस्था की तरह ज्यादा सोचने और चिंता करने वाली नहीं होती है | अक्सर, इस अवस्था में कुछ भी बहुत ज्यादा ज़रूरी नहीं होता आपके लिए, हाँ वो अलग बात है की आपका पिछवाडा बहुत दुःख रहा हो या रसोई में आग लग रही हो | इस अवस्था में तो तुम्हें सोचना भी नहीं पड़ता की “तुम्हे सोचना नहीं है” |
एक के बाद एक विचारों वाली रेल को आराम मिलता है जब हम वहाँ से बाहर निकल कर दाहिनें हिस्से में आते हैं, जहाँ हम एक शांत और खुद को खुश करने वाली चीज़ों को महसूस करते हैं |
इसलिए, कुछ भी मत करिए | बस बैठो और सोचो इसके बारे में एवं बैठो और सोचो ही मत |
“ ध्यान कर के क्या फायदा मिला अब तक?”
“कुछ भी नहीं”.
“तो इसे कर के क्यूँ वक़्त बर्बाद करना?”
गौतम बुद्ध कहते हैं -“ मैं आपको बताता हूँ कि ध्यान करके मुझे नुकसान किस बात का हुआ | बीमारी, गुस्सा, अवसाद, असुरक्षा की भावना, चेहरे पर झुर्रियों का डर, मौत का डर | और ये नुकसान ही ध्यान का फायदा है जो आदमी को मोक्ष तक ले जाता है” |
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