Mahabharata K Praman – महाभारत में संजय कौन थे और उनके साथ क्या हुआ ?

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महाभारत विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य हैं। महाभारत के प्रमाण (Mahabharata K Praman) बताते हैं कि ये कथा आज की नही बल्कि सदियों पुरानी हैं। 24000 श्लोंकों के साथ ये महाकव्य ऐसे शूरवीरों की गाथा हैं, जिन्होंने धर्म की खातिर महाभारत युद्ध लड़ा और इतिहास में अमर हो गये। आज के समय में महाभारत कथा से कोई अछूता नही है। सभी इस कहानी का सार जानते हैं। और सौभाग्यवश वेद ज्ञानियों को महाभारत युद्ध के प्रमाण भी मिले हैं। जो बताते हैं कि इतिहास में ये युद्ध असल में लड़ा गया था।

पौराणिक ग्रन्थ की माने तो इस पूरे युद्ध का हर एक अंश देखने वाले पात्र संजय थे जिन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि के इस्तेमाल से इसका सजीव वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाया था। ग्रन्थों में संजय के जीवन और महाभारत के युद्ध में उनके योगदान को सटीक भाषा में समझाया गया है। लेकिन उसके बाद उनका क्या हुआ ये नही बताया गया है। महाभारत में संजय को यह दिव्य दृष्टि कैसे मिली? युद्ध के बाद वो कहां गये और उनके जीवन में कौन सी घटनाएं घटित हुई इन सभी प्रश्नों के उत्तर हमें महाभारत के प्रमाणों में नही मिलते। चलिए आज इन सवालों के जवाब जान लेते हैं।

कौन थे संजय | Mahabharata K Praman

बहुत कम लोग संजय के बारे में जानते हैं। संजय महर्षि व्यास के शिष्य तथा धृतराष्ट्र की राजसभा में मंत्री थे। ये विद्वान सूत पुत्र थे और जाति से बुनकर थे। लेकिन महाभारत के अहम पात्रों में से एक संजय के बारे में ये जानकारी ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। कुछ महत्वपूर्ण है तो वो पांडव और कौरवों के बीच होने वाले महाभारत के युद्ध में उनका योगदान। महाभारत के वैदिक और साहित्यिक बातों को माने तो संजय वेद व्यास के प्रिय शिष्य थे।

हालांकि वो हस्तीनापुर की राजसभा में मंत्री थे लेकिन वो धर्म और अधर्म के बीच का भेद समझते थे। वो श्रीकृष्ण के भक्त तो थे ही साथ ही अधर्म होने पर अपनी आवाज उठाना जानते थे और राजा धृतराष्ट्र को हमेशा सत्य का मार्ग दिखाने का प्रयास करते थे। एक मंत्री के तौर पर संजय ने युद्ध की मुश्किल घड़ी में धृतराष्ट्र का साथ नही छोड़ा और महाभारत युद्ध का सारा आंखों देखा हाल उन्हें सुनाया। अब सवाल आता हैं कि उन्होनें ये कैसे किया।

दिव्य दृष्टि से धृतराष्ट्र को सुनाया युद्ध का हाल

दरअसल युद्ध से पहले महाभारत के रचयिता वेद व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की ताकि वह महल में बैठकर ही महाभारत के युद्ध का आंखों देखा हाल राजा धृतराष्ट्र को सुना सकें। इस वरदान के बाद युद्ध क्षेत्र से कई किलोमीटर दूर होने के बावजूद वह महाभारत युद्ध के हर अंश को देख और सुन सकते थे। महाभारत के वैदिक व साहित्यिक संबन्ध की माने तो इस वरदान के चलते संजय ही वो एकमात्र मनुष्य थे जिन्होंने अर्जुन के साथ श्रीकृष्ण के गीता उपदेश को सुना था। यहां तक की अपनी दिव्य दृष्टि की बदौलत वे श्री कृष्ण के विराट स्वरूप को भी देख पाए थे। जिसके दर्शन केवल पांडु पुत्र अर्जुन को हुए थे। लेकिन सवाल आता है कि संजय को यह दिव्य दृष्टि कैसे मिली ?

दिव्य दृष्टि एंव वैज्ञानिक तथ्य : Mahabharata K Praman

महाभारत के प्रमाण हमें बताते हैं कि धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। युद्ध के आरंभ होने से पूर्व महर्षि वेद व्यास ने धृतराष्ट्र को ये प्रस्ताव दिया कि वे उन्हें दिव्य दृष्टि दे सकते हैं। लेकिन धृतराष्ट्र को डर था कि इस युद्ध में अगर उनके पुत्रों का नाश हुआ तो वह ये सब अपनी आंखों से नही देख पाएंगे। इसीलिए उन्होंने दिव्य दृष्टि के प्रस्ताव को नही स्वीकारा। लेकिन वेद व्यास जानते थे कि पिता होने के नाते वह युद्ध का हाल जानने के लिए अवश्य व्याकुल रहेंगे। इसीलिए उन्होंने ये दिव्य दृष्टि का वरदान संजय को दे दिया। इस दृष्टि के चलते वो ना केवल प्रत्यक्ष घटनाओं को देख सकते थे बल्कि पांडवों के मन में चल रहे चिंतन को भी जान सकते थे।

Mahabharata k praman

हालांकि महाभारत ग्रन्थ इस बात की पुष्टि करता हैं कि संजय को दिव्य दृष्टि मिली थी लेकिन महाभारत के प्रमाण इस बारे में कोई जानकारी नही देते। इस वरदान का कोई वैज्ञानिक आधार भी ग्रंथों में नही समझाया गया हैं। और ना ही हमें इसके सत्य होने के कोई साक्ष्य मिलते हैं। महाभारत के वैदिक और साहित्यिक संबन्ध में इसे पूरी तरह वेद व्यास के चमत्कार के रूप में पेश किया गया हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि ये दृष्टि केवल युद्ध के परिणाम तक सीमित थी। युद्ध के समापन के साथ ही संजय की दिव्य दृष्टि भी चली गई थी।  

संजय के बारे में कहा जाता है कि वे युद्ध में कम ही शामिल होते थे। इस महाकाव्य में उनका योगदान धृतराष्ट्र को युद्ध के हर अंश से वाकिफ कराने तक ही सीमित हैं। हालांकि युद्ध में कौरवों की हार हुई और धृतराष्ट्र के सभी पुत्र मारे गए। लेकिन आखिर तक महाभारत में जीवित बचे पात्रों में संजय का नाम भी शामिल है। अब बात आती है कि महाभारत के अंत में संजय के साथ क्या हुआ? वह कहां गायब हो गए?

महाभारत के अंत में संजय के साथ क्या हुआ?

महाभारत के प्रमाण (Mahabharata K Praman) बताते हैं कि युद्ध खत्म होने के बाद हस्तीनापुर पर पांडवों का राज हो गया। इसके पश्चात कई वर्षों तक संजय युधिष्ठिर के राज्य में कार्य करते रहे। कुछ सालों बाद धृतराष्ट्र और गांधारी सारा राज काज छोड़कर अपने जीवन को सादे तौर पर जीने के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन वन की ओर निकल गए। इस जीवन यात्रा में कुंती भी पीछे नही रही। वह भी देखभाल के लिए उनके साथ चली गई। साथ में विदुर और संजय भी उनके साथ चल दिए। ये सभी लोग वन में महर्षि व्यासदेव के आश्रम में रहने लगे।

एक दिन धृतराष्ट्र ने अग्निहोत्र यज्ञ करते हुए आग वन में फेंक दी। ये आग देखते ही देखते जब वन में फैल गई तो धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती नें ध्यानस्थ होकर उसी आग में अपने प्राण त्याग दिये। महाभारत के वैदिक और साहित्यिक संबंधों के अनुसार हमें संजय के बारे में दो बयान मिलते हैं एक कथा के अनुसार वे भी इस अग्नि का शिकार हो गए थे। वहीं दूसरी कथा बताती हैं कि सभी के अग्नि में जलकर मरने के बाद संजय हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले गये। उसके बाद उनके साथ क्या हुआ? वे कब तक जीवित रहे? और उन्होंने हिमालय की यात्रा कैसे की? इस बारे में हमें कोई प्रमाण या कथा सुनने को नहीं मिलती।

तो ये थी महाभारत के अहम पात्रों में से एक संजय के जीवन के अंत की कहानी। महाभारत के प्रमाण हमें ये तो बताते हैं कि संजय का युद्ध में क्या योगदान रहा लेकिन किसी भी ग्रन्थ या कथा में हमें उनके जीवन के आखिरी समय की कहानी सुनने को नही मिलती। हमारे पौराणिक ग्रंथ और महाभारत की कहानियों से बस यही पता चलता है कि संजय बेहद विनम्र और धार्मिक स्वभाव के मनुष्य रहे जिन्होंने हमेशा धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों को अधर्म करने से रोकने का प्रयास किया पर अफसोस इस कथा में सभी अधर्म उनकी इच्छा के विरूद्ध हुए।

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