हनुमान और शनि देव में हुआ युद्ध
शनि देव ने हनुमान जी का आग्रह न मान कर उन्हें उन्हें तरह-तरह की ब्यांग्योक्तियाँ कहकर युद्ध करने के लिए उत्तेजित किया | अंततः जब शनि देव ने हनुमान जी को अपने व्यंग-बाण चला-चलाकर प्रताड़ित कर दिया तो हनुमान जी की सहनशीलता जवाब देने लगी | तभी हनुमान जी ने शनि देव को अपनी पूँछ पर जकड़ लिया और शनि देव जितना निकलने की कोशिश करने उतना ही वह घिरते चले जाते | जब हनुमान जी ने शनि देव को अपनी पूँछ पूरा जकड़ लिया तब उन्होंने शनि देव को पत्थरों में पटकना शुरू कर दिया | शनि देव हनुमान जी पूँछ से निकलने के लिए व्याकुल हो रहे थे और दूसरी ओर हनुमान जी सेतु की परिक्रमा करते हुए शनि देव को पत्थरों पर पटकनी दे रहे थे |
जब शनि देव का पूरा शारीर रक्त-रंजित हो गया और उन्हें असहनी पीड़ा होने लगी तब उन्होंने बड़ी व्याकुलता से हनुमान जी से क्षमा मांगते हुए उन्हें मुक्त करने की याचना करने लगे | तब हनुमान जी ने शनि देव का अहंकार चूर होता देख बोले “हे शनि मै तुम्हे तभी मुक्त करूँगा जब तुम मुझे यह वचन दोगे कि तुम कभी भी भगवन श्री राम और मेरे भक्तों को पीड़ा नहीं पहुचाओगे |”
तब शनि देव ने हनुमान जी को वचन देते हुए कहा कि “हे पवनसुत मै अपने इस कृत्य से लज्जित हूँ और आपको वचन देता हूँ की मै कभी भी भगवान श्री राम और आपके भक्तों की राशि में नहीं आऊंगा एवं कभी उन पर अपनी कु-दृष्टि भी नहीं डालूँगा |” इसके बाद हनुमान जी ने शनि देव को बंधन मुक्त कर दिया और कहा कि कभी तुमने अपना वचन तोड़ने की कोशिश की तो मै तुम्हे दण्डित करूँगा | बंधन से मुक्त होने पर शनि देव की पीड़ा शांत नहीं तो उन्होंने हनुमान जी से पीड़ा नाशक औषधि की याचना की और बोले की मेरी पीड़ा शांत करें पवनसुत |
तब हनुमान जी ने उनकी याचना के उपरान्त उन्हें एक पीड़ा नाशक तेल दिया जिसको लगाने के बाद शनि देव की पीड़ा का उपचार हो गया और तभी से शनि देव पर तेल चढ़ाने की परम्परा बन गयी | लोगो का यह विशवास है कि शनि देव पर तेल चढ़ाने से उनकी पीड़ा कम होती है और वह प्रसन्न होते है | इसी कारण फिर वह अपनी दशा, साढ़े साती और ढइया में अपनी कु-दृष्टि से पीड़ा नहीं पहुंचाते है |