माँ पार्वती ने सुनी विजय दशमी की कहानी भगवान शिव की जुबानी

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vijay-dashmi-story-hindiएक बार माँ पार्वती भगवान शिव से दशहरे के प्रचलन के बारे में बताने को कहती हैं | इस पर शिवजी कहते हैं कि आश्विन माह की शुक्ल दशमी को नक्षत्रों के उदय होने से विजय नामक काल बनता है जो सब कामनाओं को पूरा करने वाला होता है | यदि कोई शत्रु पर विजय पाना चाहता है तब इसी समय उसे प्रस्थान करना चाहिए | यदि इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग भी बनता हो तो वह और अधिक शुभ होता है | मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी इसी काल में लंका पर चढ़ाई की थी | यह दिन बहुत पवित्र माना गया है और क्षत्रियों का यह प्रमुख त्यौहार  होता है | निसंदेह शत्रु पर चढ़ाई ना करनी हो लेकिन इस दिन राजा अपने दल-बल के साथ तैयार होकर तमाम साज-सज्जा सहित पूर्व दिशा में जाकर शमी (राजस्थानी-खेजड़ी) के पेड़ की पूजा करता है |

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वर्तमान समय में राजा और राज्य नहीं हैं लेकिन शत्रु के दमन के लिए पूर्व दिशा में जाकर शमी के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए | शिवजी बोलते हैं कि, पूजन करने वाले व्यक्ति को शमी के सामने खड़े होकर ध्यान लगाकर कहना चाहिए – “ हे शमी वृक्ष ! तू सब पापों को नष्ट करने वाला और शत्रुओं को परास्त करने वाला है | तुमने अर्जुन का धनुष धारण किया और रामचन्द्र जी से प्रिय वचन कहे | तब पार्वती जी कहने लगी –  “शमी वृक्ष ने कब अर्जुन का धनुष धारण किया और कब रामचन्द्र जी से प्रिय वचन कहे ? कृपया कर विस्तार से बताएँ |”

शिवजी ने उत्तर दिया – “द्युत (जुए) में हारने के बाद दुर्योधन ने पांडवों को वनवास के लिए भेज दिया और कहा कि 12  वर्ष तक पांडव कहीं भी रहे और घूमें किन्तु तेरहवें वर्ष में उन्हें अज्ञातवास करना पड़ेगा |यदि इस अज्ञातवास के दौरान उन्हें कोई पहचान लेता है तब उन्हें फिर से 12 वर्ष का वनवास करना होगा | इस अज्ञातवास के समय अर्जुन अपना धनुष बाण एक शमी के वृक्ष पर रख कर राजा विराट के यहाँ बृहन्नलता के रुप में रहते हैं | विराट के पुत्र कुमार ने गौ रक्षा के लिए अर्जुन को अपने साथ रखा और अर्जुन शमी के वृक्ष से अपना धनुष निकालकर शत्रुओं को पराजित किया | इस प्रकार शमी के वृक्ष ने अर्जुन के शस्त्र की रक्षा की थी |

vijay-dashmi-story-hindiशिवजी आगे कहने लगे कि विजय दशमी के दिन रामचन्द्र जी को लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने कहा था कि आपकी विजय होगी | इसलिए विजय काल में शमी वृक्ष की भी पूजा की जाती है | एक बार राजा युधिष्ठिर के पूछने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था- “हे राजन! विजय दशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी-घोड़ों का श्रृंगार करना चाहिये | उसके बाद गाजे-बाजे के साथ मंगलाचार करना चाहिए | राजा को उस दिन अपने पुरोहित के साथ पूर्व दिशा में जाकर अपनी सीमा से बाहर निकलकर वहाँ वास्तु पूजा करनी चाहिये | राजा को पुरोहित के साथ अष्ट-दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए |”

शिवजी आगे कहते हैं कि- “ राजा को शत्रु की मूर्ति बनाकर अथवा उसका पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण बेधना चाहिए और पुरोहित को वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए | ब्राह्मणों की पूजा कर के हाथी, घोड़े, अस्त्र-शस्त्र आदि का निरीक्षण करना चाहिये | सारी क्रियाएँ करने के उपरांत ही वापस अपने महल आना चाहिये | जो राजा विधिपूर्वक शमी की पूजा करता है और विजय काल में सीमा पर जाकर पूजा करता है, वह सदा अपने शत्रु की सीमा पर विजय पाता है |

 

 

 

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