एकादशी दिन की विशेषता एवं व्रत का महत्व
हमारे शास्त्रों में एकादशी व्रत का एक विशेष महत्व बताया गया है और साथ-साथ इससे जुड़े नियम जिनका पालन करना आवश्यक है उसका भी शास्त्रों में विवरण दिया है | एकादशी से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह है कि इस दिन चावल खाना वर्जित बताया गया है | आपने बहुत से लोगों को इस व्रत का पालन करते हुए देखा होगा या आप भी उनमे से एक हो सकते है, परन्तु क्या आपने इससे जुड़े लाभ को कभी जानने की कोशिश की है | क्या कभी यह जानने की कोशिश किया कि शास्त्रकारों और विद्वानों ने इसे इतना महत्वपूर्ण क्यों बताया है ? क्या कभी आपने यह जानना चाहा कि अगर एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित बताया गया है तो वह क्या सिर्फ धार्मिक मान्यता है या फिर उसके पीछे कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है | आज हम एकादशी से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओं में प्रकाश डालेंगे और इससे जुड़ा वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी जानेंगे |
हमारे शारीर में दस इन्द्रियाँ होती है और अगर इन इन्द्रियों को वश में करना हो तो मन की चंचलता को वश में करना परम आवश्यक है | जैसा कि हम सब जानते है कि मन अत्यंत तीव्र गतिशील और चलायमान होता है और इससे जुड़े कई उधारण आपको धार्मिक कथा और प्रत्यक्ष समाज में देखने को मिल जाएँगे | हमारे ऋषि-मुनि एवं शास्त्रकारों ने इस मन की चंचलता को वशीभूत करने के लिए व्रतों का विधान बनाया है | व्रत में सिर्फ फलाहार लेने की मान्यता है परन्तु अन्न ग्रहण करना पुर्णतः वर्जित है | एसा इसलिए माना गया है ताकि मन अगर विचलित हो तो उसे फलाहार कर रोका जा सके और जब मन इससे स्थिर हो जाए तो इसे एकाग्रता की ओर ले जाना चाहिए |
एकादशी तिथि को चंदमा क्षितिज की ग्यारहवीं कक्षा में होता है और इस समय काल में साधना एवं सिद्धि के लिए अधिक महत्वपूर्ण एवं अनुकूल बताया गया है | ऐसे समय में साधना करना शीघ्र फल प्रदायक बताया गया है | धर्म अनुष्ठान और उपवास आदि के लिए एकादशी एक उत्तम तिथि मानी गयी है |
एकादशी को चावल न खाने के पीछे धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण
ऐसा मन गया है एकादशी में किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए क्यों कि इस दिन अन्न पदार्थों में पाप का निवास रहता है | इस दिन कंदमूल या श्यामक आदि जो जमीन को बिना जोते उपलब्ध हो जाते है उन्हें ग्रहण किया जा सकता है और अगर यह सहजता से उपलब्ध न हों तो फलों का सेवन करना ही उचित बताया गया है |
एक बात जो बहुत ही महत्वपूर्ण बताई गयी है वह यह है कि एकादशी के दिन धार्मिक एवं आस्तिकों की सम्मति से चावल खाना पूर्ण रूप से वर्जित बताया गया है | इसका कारण यह है कि चावल को बोते समय शुरू से लेकर अंत तक जल की अनिवार्यता (जरुरी) होती है जैसे कि चावल का धान बोते समय जल लगता है, रोपाई होती है तो पानी में, अन्य अन्नों की तरह इसकी दो या चार बार सिचाई नहीं होती बल्कि जब तक इसके दाने पाक नहीं जाते तब तक उसके पौधे पानी में ही रहते है और जब कटाई के बाद यह खाने के लिए पकाया जाता है तो भी पानी में ही, एक प्रकार से कहा जाए तो यह पानी का कीड़ा है |
अगर हम दूसरे महत्वपूर्ण बिंदु में प्रकाश डालें तो यह हम भलीभाँति जानते है की चंद्रमा को हिमांशु, हिमकर आदि नामों से जाना जाता है क्योंकि चंद्रमा जल राशि का गृह है | यह पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है | अष्टमी की तिथि से ही जल के प्रति इसका आकर्षण बढ़ने लगता है | कहने का तात्पर्य यह है कि एकादशी की तिथि से यह पानी को अपनी ओर खींचने का प्रयास करने लगता है और पूर्णिमा के दिन इसकी जल के प्रति आकर्षण क्षमता पूर्ण चरम सीमा रहती है जिस कारण समुद्र में ज्वार भाटा आता है | आप किसी भी पूर्णिमा को कलकत्ता या बम्बई में किसी भी समुद्र के किनारे ज्वार भाटे का नजारा देख सकते है तो फिर चावल रूप में हमारे अन्दर उपस्थित जल को चंद्रमा खींचने का प्रयास भला क्यों नहीं करेगा | जिसके परिणाम स्वरूप अपच, बदहजमी आदि की शिकायत हमारे पेट में उत्पन्न हो सकती है |
इसी कारण से धार्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों रूप से एकादशी के दिन चावल खाना पूरी तरह से वर्जित बताया गया है | वैसे भी चावल खाने से शारीर में आलस्य बढ़ता है | इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि हर महीने में दो एकादशी आतीं है एक कृष्ण पक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की, तो जब एक एकादशी में चावल नहीं ग्रहण करते तो कृपया दूसरी एकादशी में भी न करें | वैसे भी चावल का भोजन निद्रा और आलस्य्वर्धक माना गया है और अगर आप इस एकादशी में नियम बद्ध होकर इसका पालन करेंगे तो आलस्य, नकारात्मकता और रोगों से बचे रहेंगे |