सनातन हिन्दू धर्म में देवता पूजन करने के लिए पंचोपचार पूजन विधि के बारे में बताया गया है| भगवान की मूर्ति में देवता तत्व होता है और पंचोपचार पूजन करने से मनुष्य को देव तत्व प्राप्त होता है, ऐसा होने से मनुष्य का जीवन सुलभ बन जाता है, इसलिए पंचोपचार पूजन करना चाहिए| पंचोपचार पूजन से हम घर में की जाने वाली रोज़ की पूजा कर सकते हैं| इसके लिए चन्दन, कुमकुम, पुष्प, पत्र, धुप, दीप और नैवेद्य तैयार रखें| पंचोपचार पूजा सबसे संक्षिप्त पूजन होती है, भगवान को स्नान आदि करने के बाद…
पंचोपचार पूजन विधि –
प्रथम उपचार – सबसे पहले देवता को चन्दन लगाना और कुमकुम चढ़ाना
पंचोपचार पूजन में सबसे पहले भगवान को अपनी अनामिका ऊँगली से चन्दन लगाएं और फिर अनामिका ऊँगली और अंगूठे के बिच चुटकीभर कुमकुम लेकर भगवान के चरणों में डालें|
दूसरा उपचार – दूसरा देवता को पत्र-पुष्प अर्पित करना
भगवान को प्रकृतिक और सात्विक पत्र और पुष्प चढ़ाएं, पत्र जैसे शिव जी को बेल पत्र और गणेश जी को दूर्वा चढाई जाती है, पत्र पहले अर्पित करें और बाद में पुष्प अर्पित करें, पुष्प या पत्र भगवान के चरणों में अर्पित करें नाकि सर में|
तीसरा उपचार – भगवान को धूप दिखाना
भगवान को सुगन्धित वातावरण प्रिय होता है इसलिए देवता को धूप जला कर दिखाने का नियम है, इससे वातावरण सुगन्धित होजाता है, धूप दिखते समय दूसरे हाथ से घंटी बजाएं और धूप के धुंए को हाँथ से न फैलाएं|
चौथा उपचार – भगवान की दीप आरती करना
देसी गौ माता के घी का दीपक नित्य प्रतिदिन जलाएं और आरती करते समय घंटी बजाएं, घी के दीपक से भगवान की आरती करें|
पांचवा उपचार – भगवान को नैवेद्य अर्पित करना
भगवान को नैवेद्य अर्थात भोग प्रसाद अर्पित करें, घर में की जाने वाली रोज़ की पूजा में गुड़, मिश्री का भोग लगाया जा सकता है, या शुद्ध गौ माता के दूध से बानी मिठाई भी अर्पित कर सकते हैं, अलग-अलग भगवान के लिए उनके पसंदीदा भोग प्रसाद को अर्पित किया जा सकता है जैसे हनुमान जी को गुड़ और चना, गणेश जी को मोदक|
षोडशोपचार पूजन विधि
दोस्तों जिस तरह पंचोपचार पूजन विधि में पांच तरह के उपचार होते है उसी प्रकार षोडशोपचार पूजन विधि में सोलह तरह के उपचार बताएं गए हैं, इन सोलह तरीकों से हम भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और देव तत्व प्राप्त कर अपने जीवन को सुलभ और सात्विक बनाते हैं, आइये एक एक करके देखते हैं षोडशोपचार के सोलह उपचार|
प्रथम उपचार – आवाहन और ध्यान करना
इसमें मन्त्रों और भाव के माध्यम से देवता का आवाहन किया जाता है की देवता आएं और प्रतिमा में निवास करें, इसमें ईष्ट देवता से निवेदन किया जाता है की हमारे सामने/पास आएं, आवाहन करने के लिए हाँथ में चन्दन, पुष्प, अक्षत लें और देवता का आवाहन करते हुए चन्दन पुष्प अक्षत अर्पित करके हाँथ जोड़ें|
दूसरा उपचार – देवता को विराजमान होने के लिए आसान देना
देवता को बैठने के लिए सुन्दर आसान दिया है ऐसी कल्पना करते हुए देवता के प्रीय पुष्प पत्र आदि हांथों में लेकर अर्पित करें|
तीसरा उपचार – पाद्य (पाद प्रक्षालन देवता के चरण धुलाने के लिए)
देवता के प्रकट होजाने पर पाँव धुलाकर कर आचमन कराकर स्नान कराते हैं, इसके लिए देवता की प्रतिमा के चरणों में आचमनी से जल चढ़ाएं|
चौथा उपचार – अघ्र्य (हस्त प्रक्षालन देवता के हाँथ धुलाने के लिए)
आचमनी में पहले जल लेकर उसमे पुष्प चन्दन और अक्षत डालकर प्रतिमा के हाँथ पर चढ़ाएं और कल्पना करें की आप देवता के हाँथ धुला रहे हैं|
पांचवा उपचार – आचमन (मुख प्रक्षालन देवता को कुल्ला करने के लिए जल अर्पित करना)
सबसे पहले आचमनी में जल लेकर देवता को अर्पित करें, साथ में अंजलि हथेली में जल लेकर खुद भी पियें इससे मन की शुद्धि होती है इसे ही आचमन कहते हैं, आचमन तीन बार किया जाता है|
छंटवा उपचार – स्नान
देवता को जल से स्नान कराया जाता है, इस प्रकार देवता का स्वागत सत्कार किया जाता है, अगर शालिग्राम, शिवलिंग या धातु की मूर्ति हो तो उस पर जल चढ़ा कर स्नान करें, मिटटी की मूर्ति या फोटो हो तो पुष्प या तुलसीदल से जल सिर्फ छिड़कें| स्नान जल से या दूध से भी कराया जा सकता है|
सातवां उपचार – वस्त्र देना
देवता को वस्त्र अर्पित किया जाता है या पहनाया जाता है , ऐसी कल्पना करें की आप देवता को वस्त्र पहना रहे हैं, वस्त्रों के लिए रक्षा सूत्र अर्पित कर सकते हैं| एक टुकड़ा रक्षा सूत देवता के गले में डालें और एक देवता के चरणों में अर्पित करें|
आठवां उपचार –
पुरुष देवताओं को यगोपवीत अर्थात जनेऊ अर्पित करना
इसके बाद नौवें उपचार से तेरहवें उपचार तक –
नौवें उपचार से तेरहवें उपचार तक पंचोपचार पूजन विधि से भगवान की पूजा करना है| पंचोपचार विधि में आने वाले पांच उपचारों के बारे में ऊपर देख सकते हैं|
चौदहवां उपचार – ताम्बूल और दक्षिणा
ताम्बूल का मतलब पान होता है तेरहवें उपचार में नैवेद्य अर्पित करने के बाद जल और पान अर्पित किया जाना चाहिए| पान में पूंगी फल अर्थात सुपारी, लौंग और इलाइची भी रखना चाहिए, इसके साथ साथ द्रव्य दक्षिणा के रूप में सिक्का या सोना चाँदी कुछ भी अर्पित कर सकते हैं, इतना सब करने के बाद आरती करें|
पन्द्रहवां उपचार – मन्त्र पुष्पांजलि
इस उपचार में अपने हांथों में पुष्प लेकर भगवान से प्रार्थना करनी है की इन फूलों की सुगंध की तरह हमारी कीर्ति चारों और फैले और जीवन खुशियों भरा हो|
सोलहवां उपचार – प्रदक्षिणा, स्तुति करना और नमश्कार करना
ये आखरी उपचार है इसमें भगवान की परिक्रमा करनी है, स्तुति में भगवान से किसी भी गलती के लिए क्षमा मांगना है और आशीर्वाद मांगना है, परिक्रमा करने की व्यवस्था न हो तो अपने स्थान पर खड़े होकर तीन बार घूम जाये, परिक्रमा हमेशा घडी की सुई की दिशा में ही करें और तीन बार|
दोस्तों हमने सनातन हिन्दू धर्म में बताई गई दो पूजा विधियों के बारे में आपको विस्तार से बताया, अगर आपको हमारी ये कोशिश अच्छी लगे तो कमेंट जरूर करें