Char Dham Importance & Story|चार धाम का महत्त्व एवं विशेषता

0
1332
Char Dham

Char Dham – क्यां है चार धाम एवं क्या है हिन्दू धर्म में इनकी विशेषता

Char Dham In India: कहते हैं चारों दिशाओं का सम्पूर्ण सार हैं हिन्दू धर्म के चार धाम। संत शंकराचार्य द्वारा नियुक्त यह तीर्थ हिन्दू धर्म की एकजुटता और व्यवस्था का प्रतीक है। भारतीय धर्मग्रंथों में इन स्थलों का हमेशा से एक खास महत्व रहा है। भारत में ये चार धाम (Char Dham) चार दिशाओं में स्थित हैं। जहां उत्तर में बद्रीनाथ को तीर्थ धाम कहा जाता है, वहीं दक्षिण में रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारिका को तीर्थ धाम माना गया है।

स्कंदपुराण के तीर्थ प्रकरण में कहा गया है कि इन तीर्थ धामों के दर्शन से मनुष्य के सभी पाप कट जाते हैं, शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मरने के बाद मोक्ष की प्राप्त होती है। हालांकि प्रचीन समय से ही चारों धामों को सनातन धर्म में विशेष मान्यता प्राप्त थी लेकिन इसके महत्व को पूरे विश्व में प्रचारित करने का कार्य किया गुरु शंकराचार्य जी ने।

माना जाता है कि गुरु शंकराचार्य जी ने लोगों में एकता तथा अनेकता के भाव को जागृत करने के लिए चार धाम और 12 ज्योतिर्लिगों की यात्रा को आरंभ किया था। इसके पीछे उनका मूल उद्देश्य पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधना था वह चाहते थे की देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोग पूरे भारत की विविधता और संस्कृति से परिचित हो सके।

Char Dham Importance | चारों धाम का इतिहास व विशेषताएं

सनातन धर्म कि मानें तो हर धाम की पीछे एक पौराणिक कथा छिपी हुई है और हर कथा का अपना ही एक महत्व है।

1. बद्रीनाथ धाम का इतिहास

प्राचीन कथाओं में बद्रीनाथ तब प्रसिद्ध हुआ जब भगवान विष्णु नें नर-नारायण के अवतार में इस स्थल पर तपस्या की। उनकी तपस्या के समय यह स्थान बेरी के पेड़ों से भरा हुआ था जिस समय वह ध्यान में लीन थे तब एक बेरी के पेड़ ने उन्हें सूरज की गर्मी से लेकर भारी वर्षा से बचाए रखा।

स्थानीय लोगों की मान्यता है कि भगवान नारायण को सभी बाधाओं से सुरक्षित रखने के लिए लक्ष्मी माँ नें बेरी के पेड़ का रूप धारण किया था। जब नारायण जी कि तपस्या पूरी हुई तो उन्होने लक्ष्मी जी को वचन दिया कि, लोग हमेशा मेरे नाम के पहले तुम्हारा नाम लेगें, और तभी से हिन्दु धर्म में नारायण और लक्ष्मी जी को “लक्ष्मी-नारायण” कहकर बुलाया जाता है। और इस स्थल को बद्री-नाथ अर्थात बेरी वन के भगवान के नाम से जाना जाता है।

बदरीनाथ धाम की विशेषताएं:

उत्तराखंड में हिमालय की गोद में स्थित बद्रीनाथ धाम पूरी तरह भगवान नारायण को समर्पित है। राज्य में यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर नर और नारायण पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है।

मंदिर में नर-नरायण की पूजा होती है और अखंड ज्योति जलती है। दूर-दूर से तीर्थ पर आने वाले श्रद्धालु यहां तप्तकुण्ड में स्नान कर अपनी आत्मा को पावन करते हैं। और नारायण जी को प्रसाद के तौर पर वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला आदि चढ़ाते हैं।

इस तीर्थ स्थल को लेकर एक कहावत बेहद प्रचलित है जो कहती है कि ‘जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी। कहने का तात्पर्य है कि जो मनुष्य बद्रीनाथ तीर्थ के दर्शन पा लेता है उसे फिर माता के गर्भ में नही आना पड़ता।

शास्त्रों में भी कहा गया है कि मनुष्य को जीवन में एक बार बद्रीनाथ के दर्शन अवश्य करने चाहिए। हर वर्ष बद्रीनाथ के कपाट अप्रेल या मई में खुलते हैं और 6 महीने के बाद नवंबर में मंदिर के पट फिर से बंद हो जाते हैं।

रामेश्वरम धाम का इतिहास:

Char Dham Yatra

त्रेता युग में भगवान राम ने रामेश्वरम में चेन्नई से लगभग चार सौ मील दक्षिण पूर्व में एक शिव लिंग का निर्माण किया। उन्होनें भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वहां पूजा अर्चना की थी।

दरअसल रावण का अंत करने के बाद उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, जिससे मुक्त होने के लिए उन्होंने समुद्र के किनारे शिवलिंग की स्थापना की थी तभी से यह स्थल रामेश्वरम धाम के रूप में प्रचलित हो गया। रामेश्वरम का अर्थ है “राम भगवान”

रामेश्वरम धाम की विशेषताएं:

दक्षिण भारत के काशी के रूप में प्रसिद्ध रामेश्वर मंदिर तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। मंदिर हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरे हुए एक सुंदर शंख आकार द्वीप में मौजूद है।

इस मंदिर में शिव जी को लिंग के रूप में पूजा जाता है। और गंगोत्री से लाये गंगाजल से शिव का अभिषेक किया जाता है। मंदिर में तीर्थयात्री द्वारा जल चढ़ाने की परंपरा नहीं हैं।

सदियों से पुजारी के माध्यम से ही अभिषेक किया जाता है। मंदिर में दर्शन के लिए समय काफी कम रहता है इसीलिए श्रद्धालु सुबह 5 बजे ही भगवान शिव के दर्शन के लए पहुंच जाते हैं।

द्वारिका धाम का इतिहास :

तीसरा धाम द्वारिका द्वापर युग में प्रसिद्ध हआ। जब भगवान कृष्ण नें द्वारिका को अपनी कर्म भूमि बनाया और इस स्थल को अपने निवास स्थान के रूप में चुना।  

इसके बाद कलयुग में यह स्थान भक्तों के लिए महातीर्थ बन गया। बता दें कि इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रभ द्वारा किया गया था। और 15वीं -16वीं सदी में मंदिर का विस्तार किया गया।

द्वारिका धाम की विशेषताएं:

Dwarika is one of the char dham

द्वारिका गुजारत राज्य के द्वारका जिले में स्थित है। यह जिला पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे बसा है और पूरी तरह भगवान श्री कृष्ण को समर्पित हैं। माना जाता है कि द्वारिका कि स्थापना भगवान श्रीकृष्ण नें की थी हालांकि असल द्वारिका नगरी तो सदियों पहले जल्मग्न हो चुकी है लेकिन श्रीकृष्ण की इस कर्मभूमि को आज भी पूजा जाता है।

मंदिर सुबह 6:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तथा शाम 5:00 बजे से रात 9.30 बजे तक खुला रहता है। बीच-बीच में भोग और श्रृंगार के चलते मुख्य द्वारिकाधीश के पट समय-समय पर बंद होते है। मंदिर के ऊपर लगे धव्ज पर सूर्य और चंद्रमा बने हुए हैं जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि जब तक पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा अस्तित्व में रहेंगे तब तक श्री कृष्ण का राज रहेगा।

जगन्नाथ पुरी धाम का इतिहास :

ब्रह्म और स्कंद पुराण की मानें तो द्वापर युग के बाद भगवान श्रीकृष्ण नीलमाधव के रूप में कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और सबर जनजाति के परम देवता बन गए। इस क्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अनेक लीलाएं भी दिखाई। सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान श्री कृष्ण कबीलाई देवता के रूप में अवतरित हुए।

जगन्नाथ पुरी धाम की विशेषताएं:

पश्चिम दिशा में स्थित पुरी धाम नारायण भगवान के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस धाम में श्रीकृष्ण की पूजा जगन्नाथ देव के रूप में की जाती है। जगन्नाथ यानी जग के नाथ। पुराणों में इसे धरती के वैकुंठ के रूप में परिभाषित किया गया है। य

ह एकमात्र मंदिर है जहां श्रीकृष्ण उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। मंदिर में प्रसाद के रूप में मुख्य तौर पर भात चढ़ाया जाता है। धाम का मुख्य मंदिर 1000 वर्ष पुराना है जिसकी स्थापना राजा चोडा गंगा देव और राजा तृतीआंग भीम देव ने की थी।

आज भी इस मंदिर की वार्षिक रथ यात्रा काफी प्रसिद्ध है जिसे देखने दुनियाभर से श्रद्धालु उड़ीसा आते हैं। उनके इस उत्सव को सफल बनाने के लिए जगह-जगह पर भक्तों के लिए जल-पान व भोज की व्यवस्था भी की जाती है। इ

स पवित्र यात्रा की शुरुआत श्री जगन्नाथ मंदिर से होती है, और मौसी माँ मंदिर होते हुए श्री गुंडिचा मंदिर पर जाकर संपन्न होती है।

Importance of Char Dham Yatra | चार धाम का विशेष महत्व

धर्म ग्रंथों के अनुसार चार धाम (Char Dham) मुक्ति का द्वार है, इन तीर्थ स्थलों की यात्रा मनुष्य को सन्मार्ग की ओर ले जाता है। तीर्थ धाम मनुष्य का मार्ग दर्शन तो करते है ही साथ ही साथ ज्ञान को भी बढ़ाते हैं। देवी देवताओं से जुड़ी पौराणिक कथाओं से मनुष्यों को अवगत कराते है, जिससे पुरानी परंपराओ और रीति रीवाजों के जानने का अवसर प्रदान होते है।

चारों दिशाओं के चार धामों की यात्रा इन्सान को अखंड भारत की एकता और विविधता से जोड़ती है। कहते हैं कि जब भगवान नारायण अपने धामों की यात्रा पर निकलते हैं तो हिमालय की गोद में स्थित बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में स्थित द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण के रामेश्वरम में विश्राम करते हैं।

इसीलिए इन धामों की यात्रा के बिना मुक्ति के द्वार की यात्रा अधूरी है तीर्थ धाम मनुष्य को भगवान और भक्ति के करीब ले जाती है और यही वजह है कि इन्हें चारों दिशा में स्थापित किया गया है।

तो यह है हिन्दू धर्म के चार धाम जिन्हें पुराणो में मोक्ष का द्वार कहा गया है। इन तीर्थ स्थल की यात्रा मन की शान्ति के साथ-साथ आत्मा को भी शान्त व तृप्त करती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here