Bijasan Mata Mandir (Salkanpur Temple)| विजयासन माता मंदिर
मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में सलकनपुर नामक गाँव में 1000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है प्रसिद्ध विजयासेन माता का प्राचीन मंदिर। वैसे तो ये 51 शक्तिपीठों में शामिल नहीं है पर महत्वता के दृष्टिकोण से इसका महत्व और महात्म्य किसी भी शक्तिपीठ से कम नहीं है। माता विजयासेन, देवी दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं। यहाँ देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 1400 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी होती है, पहले यही मार्ग था किंतु अब सुविधा के लिए सपाट रास्ता बना दिया गया है जिस से साढ़े चार किलोमीटर की चढ़ाई चारपहिया और दुपहिया वाहनों से की जा सकती है और इसके अतिरिक्त रोप वे भी है जिस से 5 मिनिट में दूरी तय हो जाती है।

ऐसा माना जाता है कि यहाँ जो भी मनोकामना लेकर भक्त जाते हैं वो निश्चित ही पूर्ण होती है। यहाँ देवी अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं और कहते हैं कि यहाँ आने वाले निःसंतान दंपत्ति की गोद देवी कृपा से भर जाती है। वैसे यहाँ देवी माता पार्वती के स्वरूप में गणेशजी को गोद में लिए हुई हैं| ऐसा कहा जाता है कि ये स्वयम्भू हैं। यहां महालक्ष्मी महासरस्वती और भैरवनाथ की प्रतिमा भी है जिसके कारण यहाँ आने वाले भक्तों को सभी का आशीर्वाद स्वतः ही प्राप्त होता है। कई भक्तों की ये कुलदेवी भी हैं।
Bijasan Mata Temple Myth |पौराणिक महत्व
इस स्थान का पौराणिक महत्व भी है। देवी के इस रूप को विजयासेन क्यों कहा गया इसका वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है कि रक्तबीज नामक राक्षस से त्रस्त होकर समस्त देवता माता दुर्गा की शरण में गए और उनसे प्रार्थना की| तब देवी ने विकराल रूप धारण करके इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार किया तब सभी देवता ने विजयी माता को आसन दिया इसी लिए इनका नाम विजयासेन माता पड़ा।
वैसे विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में स्थित होने से इन्हें विंध्यवासिनी भी कहा जाता है। जैसे ही भक्त इस मन्दिर में प्रवेश करता है उसमें एक अलग से शक्ति समाहित हो जाती है, यहाँ देवी का ऐसा पुण्यप्रताप है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ बाघ भी माता का आशीर्वाद लेने को प्रतिदिन मंदिर की परिक्रमा करता है। वर्षों पहले जब मंदिर नहीं बना था तब बाघ यहीं मंदिर के पास रहते थे। इसे विजयासेन या सलकनपुर धाम भी कहा जाता है।
देवी का प्राकट्य और मंदिर निर्माण
इसका इतिहास लगभग 300 वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण बंजारों द्वारा कराया गया। ऐसी प्रचलित कथा है कि, बंजारे जो जीवन यापन के लिए पशुओं का व्यापार करते थे; एक बार यहाँ से गुजर रहे थे और एक स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रुके तभी उनके पशु अदृश्य हो गए| वो बहुत परेशान थे और पशुओं को ढूंढते हुए एक वृद्ध बंजारे को एक कन्या दिखाई दी| उस कन्या ने कहा कि यहाँ देवी का स्थान है अगर आप यहां देवी की आराधना करेंगे तो आपकी समस्त मनोकामना पूर्ण होंगी।

ऐसा सुनने पर बंजारों ने कहा कि हमें तो स्थान कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा| ऐसे में कन्या ने एक पत्थर उठा के सामने फेंका जहाँ वो पत्थर गिरा वहां देवी प्रगट हुईं फिर बंजारों ने मनोकामना की और उनके पशु मिल गए। तब उन्होंने यहाँ मंदिर निर्माण करवाया। किंतु हिंसक वन्यजीवों और चौसठ योग योगिनियों का स्थान होने के कारण लोग यहाँ आने से डरते थे| ऐसे में स्वामी भद्रानंद ने तपस्या करके चौसठ योग योगिनियों को एक स्थान पर स्थापित कर इस स्थान को चैतन्य किया। धुनी में एक चिमटा अभिमंत्रित कर के उसे तली में स्थापित किया आज भी इसी धुनी की भभूत ही विशेष प्रसाद स्वरूप श्रद्धालुओं को दी जाती है।
Bijasan Mata Temple History|बिजयासेन माता मंदिर का इतिहास
ये स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। विंध्यक्षेत्र जो सैकड़ों एकड़ में फैला है उसी पर्वत श्रंखला में ये स्थित है। ये एक शांत ज्वालामुखी पर बसा है। 50,000 वर्ष पूर्व ये ज्वालामुखी फटा था जिसके लावे से ये पर्वत बना है। शांत ज्वालामुखी 1 लाख वर्ष में फूटते हैं अभी इसके फटने में 50,000 वर्ष का समय शेष है। चूंकि मालवा क्षेत्र उपजाऊ था इसलिए ये हरा भरा हो गया और यहाँ बस गए | होशंगाबाद, रेहटी, नसरुल्लागंज, देलवाड़ी और सलकनपुर यहाँ बस गए।

पौराणिक दंतकथाओं में यहाँ महान पराक्रमी सम्राट अशोक और प्रतापी पांडवों के आने का उल्लेख मिलता है। बुद्ध के आने का उल्लेख भी मिलता है। अशोक का पाँचवाँ शिलालेख और स्तूप का यहाँ मिलना इसका प्रमाण हैं। यहाँ सलकनपुर धाम के अतिरिक्त कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमे शंकर मंदिर, देलावाड़ी, बौद्ध स्तूप, सारू मारू की गुफा और गिन्नौरगढ़ का किला प्रसिद्ध हैं। यहाँ औषधि वृक्षों की प्रजातियाँ भी मिलती हैं जिनमें से कई तो विलुप्त हो चुकी हैं। यहाँ से कुछ ही दूरी पे रातापानी अभ्यारण्य भी स्थित है।
आज भी इस स्थान की पूरी पड़ताल नहीं हो पाई है देवी की प्रतिमा का प्राकट्य, गुफ़ा की लंबाई, शिलालेख, गोंड राजाओं का राज्य और उनकी लोहे से सोना बनाने की कला आज भी रहस्य हैं। यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और नवरात्र में ये संख्या लाखों में पहुँच जाती है। इसके अलावा प्रतिवर्ष यहाँ माघ के महीने में भव्य मेला लगता है जो की देखते ही बनता है |
Bijasan Mata Mandir Route Information|बिजासन माता मंदिर पहुँचने की जानकारी

इसे मध्यप्रदेश का पर्यटन स्थल भी घोषित कर दिया गया है ये मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से मात्र 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और नर्मदा से 15 किलोमीटर। यहाँ से 59 किलोमीटर की दूरी पर रातापानी अभ्यारण्य स्थित है। भोपाल से बस , कैब और दुपहिया वाहनों से यहाँ पहुँचा जा सकता है।
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