मध्यप्रदेश के दतिया जिले में पीताम्बरा देवी (Baglamukhi Mata Temple) का सिद्ध स्थान है जो पीताम्बरा पीठ के नाम से विख्यात है। यहाँ कोई भी मान्यता खाली नहीं जाती। चाहे अमीर हो या गरीब माता की कृपादृष्टि सभी पर समान रूप से पड़ती है।ये स्थान पूरे देश में प्रसिद्ध है| शायद ही कोई हिन्दू ऐसा हो जो पीताम्बरा पीठ के बारे में जानता न हो। यहाँ भक्तों के जीवन में नित नए चमत्कार घटित होते रहते हैं जिससे उनकी आस्था देवी माँ में निरंतर बनी रहती है। यहां देवी माँ के स्मरण मात्र से कष्टों का निवारण हो जाता है।
धार्मिक मान्यता |Religious Belief About BaglamukhiPitambarapeeth

यहाँ देवी की चतुर्भुज प्रतिमा अपने पूर्ण तेजस्वी रूप में विराजित है, जिनके एक हाथ मे गदा, दूसरे मे पाश, तीसरे मे वज्र और चौथे में एक राक्षस की जिव्हा है। यहाँ एक छोटे से झरोखे से देवी के दर्शन किये जाते हैं किन्तु प्रतिमा के स्पर्श की सख़्त मनाही है। ऐसा माना जाता है कि माँ बगलामुखी ही पीताम्बरा देवी के स्वरूप में हैं इसलिए इन्हें पीली वस्तुएं अर्पित की जाती हैं और पीले प्रसाद का ही भोग लगाया जाता है। यहाँ एक ध्यान कक्ष स्थित है जहाँ लोग दूर दूर से आकर ध्यान साधना करते हैं |यहाँ आकर जीवन मे अनुशासन और मौन का महत्त्व समझा जा सकता है।
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ब्रम्हास्त्र की देवी
इन्हें (Baglamukhi Maa) ब्रम्हास्त्र की देवी भी कहा जाता है अर्थात जिस तरह जहाँ सारे अस्त्र बेकार हो जाते थे वहाँ ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया जाता था ठीक उसी तरह देवी की शरण में आके वो सारे बिगड़े काम बन जाते हैं जो कहीं सिद्ध नहीं हो पाते हैं। कहा जाता है कि यही भगवान विष्णु की आराध्या हैं। इन्हें शत्रुनाश की अधिष्ठात्री और राजसत्ता की देवी भी कहा जाता है। किंतु इन्हें प्रसन्न करना इतना सहज नहीं हैं उसके लिए विशिष्ट अनुष्ठान करना होता है जिसमें पीलेवस्त्र पहन के पीली वस्तुएं अर्पित कर संकल्प द्वारा अपनी मनोकामना रखी जाती है और सम्पूर्ण विधि से अनुष्ठान करने पर वो अवश्य ही पूर्ण होती है।
भारत चीन युद्ध 1962
कहा जाता है ये एक मात्र ऐसा तंत्रपीठ है जहाँ पंचम्याकार पूजा सात्विक रूप में की जाती है। यहाँ मनोकामना पूर्ति के लिए लोग गुप्तअनुष्ठान करवाते हैं। ऐसा प्रचलित है कि 1962 में जब भारत चीन का युद्ध हुआ था तब यहाँ एक गुप्त अनुष्ठान किया गया था जिसके प्रताप से चीन को पीछे हटना पड़ा था।
माता धूमावती
इसी प्राँगण में आपको पीताम्बरा देवी के साथ ही माता धूमावती और खंडेश्वर महादेव के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त होता है। माता धूमावती को 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है । इनके दर्शन केवल आरती के समय किये जा सकते हैं अन्य समय पर कपाट बंद रहते हैं। ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ सौभाग्यवती स्त्रियाँ धूमावती माता के दर्शन नहीं कर सकती। धूमावती माता की तस्वीर खींचने की यहाँ सख्त मनाही है। धूमावती माता को नमकीन भोज्य पदार्थों का भोग अर्पित किया जाता है जो यहाँ आने वाले भक्तों के लिए जिज्ञासा का विषय है और माता के प्रसाद हेतु यहाँ कई स्थानों पर स्वदिष्ट भजिये मिलते हैं जिन्हें श्रद्धालु स्वाद लेकर ग्रहण करते हैं।

धूमावती माता के विषय में वैसे तो कई कथाएं प्रचलित हैं |उन्हीं में से एक कथा है कि एक बार शिवजी ध्यानमग्न थे और माता पार्वती ने उनसे प्रणय निवेदन किया परंतु महादेव ने ध्यानमग्न होने के कारण उसे अस्वीकार कर दिया जिस से क्रोधित हो माता ने उन्हें भस्म कर दिया और वो भस्म अपनी देह पर धारण कर ली इस तरह उनका ये स्वरूप धूमावती माता के रूप में माना गया। इसी प्रांगण में खंडेश्वर महादेव भी स्थित हैं यहाँ की एक लोक मान्यता के अनुसार सुबह मंदिर के खुलने पर एक फूल चढ़ा हुआ मिलता है और कहा जाता है कि अश्वस्थामा रात्रि में वो फूल चढ़ाकर जाते हैं चूंकि इस शिवलिंग को महाभारतकालीन माना जाता है |
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बगलामुखी माता का इतिहास
प्राचीन काल में खंडेश्वर महादेव के स्थान को वनखंडी कहा जाता था और लोग वहीं पूजन के लिए जाते थे। 1935 में परम तेजस्वी स्वामी जी द्वारा पीताम्बरा पीठ की स्थापना हुई। स्वामी जी का कुल गोत्र और जन्मस्थान आज तक रहस्य है। कहा जाता है कि स्वामी जी पीताम्बरा देवी को अपनी माँ के स्वरूप मे पूजते थे और उन्हीं के साधक थे। स्वामी जी के जप तप और साधना के कारण ही ये स्थान पूरे देश मे सिद्धपीठ और चमत्कारी धाम के रूप में जाना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि स्वामी जी को धूमावती देवी के दर्शन होते थे और उन्हीं के निर्देश पर वे साधना करते थे। उन्होंने ही देवी की स्थापना की पर एक प्रचलित मान्यता के अनुसार एक कथा ये भी प्रचलित है कि धूमावती देवी की स्थापना के ठीक एक वर्ष बाद स्वामी जी ने देवी के प्राकट्य दिवस के ही दिन स्वेच्छा से समाधि ले ली थी। स्वामी जी की महानता और ख्याति दूर दूर तक थी और शंकराचार्य भी उनको नमन करते थे।
तारा देवी का तारापीठ स्थान
दतिया में ही दस महाविद्याओं में से एक और तारा देवी का स्थान भी स्थित है जिसे तारापीठ कहा जाता है ।ये श्मशान भूमि पर बना पीठ है। यहाँ भैरव बाबा का भी स्थान है जिनकी प्रतिमा स्वयम्भू है। स्थानीय भाषा मे इसे पंचम कवि की तोरिया भी कहते हैं।
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वेद विद्यालय|Ved Vidyalaya Baglamukhi Pitambarapeeth
यहाँ कार्यरत साधक पंडित शुभम व्यास जी ने बताया कि यहाँ प्रथमा से उत्तरमध्यमा तक वेद विद्यालय भी संचालित है। जिसमे संस्कृत श्लोक और वेद आदि की शिक्षा दी जाती है। यहाँ के विद्यार्थियों को निशुल्क आवासीय सुविधा भी दी जाती है।इस तरह देवी कृपा से ये एक सिद्ध और प्रसिद्ध पीठ है।
बगलामुखी पीताम्बरपीठ कैसे पहुँच |How To ReachBaglamukhi Pitambarapeeth
रेलमार्ग से दतिया पहुंचा जा सकता है और ग्वालियर से यहाँ की दूरी 77 km है जहाँ बस,कैब आदि से आसानी से पहुँचा जा सकता है| ये दूरी मात्र 2 घंटे 3 मिनिट में तय हो जाती है।