हिन्दुओं के अनेक तीर्थ स्थल है लेकिन धाम केवल चार ही है |
हिन्दू धर्म में चार वेद है जैसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद | ये चार वेद ही हिन्दू संस्कृति के आधार है तथा वर्ण भी चार है जैसे ब्रहामण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र | चार वर्णों कि जीवनचर्या का विभाजन भी चार भागो में हुआ है जिसे आश्रम कहते है – ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास | पुरुषार्थ भी चार माने गए है जैसे अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष | दिशाएँ भी चार है और इन दिशाओं के अनुपात में धाम भी चार है | पूर्व की ओर जगन्नाथ धाम, पश्चिम की ओर द्वारिका, उत्तर में बद्रीनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम | ये चारो धाम चार वेदों के प्रतीक है जैसे कि बद्रीनाथ जी यजुर्वेद के प्रतीक, रामेश्वरम जी ऋग्वेद के, द्वारिकाधीश सामवेद के, तथा अथर्ववेद के प्रतीक भगवान जगन्नाथ जी है |
हिन्दू मान्यताओ के अनुसार व्रत-उपवास रखने का धार्मिक एवं वैज्ञानिक कारण |
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास रखना चाहिए | देवी-देवता प्रसन्न होने पर मनोवांछित फल प्रदान करते है |
वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से उपवास रखने का कारण यह है कि ‘अन्न’ में एक प्रकार का नशा होता है, मादकता होती है | भोजन करने के बाद आप स्वयं अनुभव करते होंगे कि आलस्य आता है | कभी-कभी पेट में गैस या खट्टी डकार आने जैसा विकार उत्पन्न हो जाता है | शारीर के सौष्ठव को बनाये रखने एवं अन्न की मादकता को कम करने का एकमात्र साधन उपवास है |
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सूर्य को जल देने का धार्मिक एवं वैज्ञानिक कारण |
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को जल दिए बिना भोजन ग्रहण करना पाप है | अलंकारिक भाषा में वेद कहते है की सूर्य को दिए गये अर्घ्य के जलकण वज्र बनकर असुरों का नाश करते है | शास्त्रों के अनुसार नियमित रूप से प्रातः काल पूर्व की तरफ मुख कर के सूर्य को जल देना चाहिये |
क्या आप जानते है कि वैज्ञानिक द्रष्टि में ये असुर है कौन ? ये असुर कोई और नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के रोग है जिनको नष्ट करने कि दिव्य शक्ति सूर्य की किरणों में है | एन्थ्रेक्स के वायरस जो कई वर्षो के शुष्कीकरण से नहीं मरते वे सूर्य की किरण से सिर्फ एक से दो घंटो में ही mar जाते है | हैजा, निमोनिया एवं चेचक के कीटाणु पानी में डालकर उबालने में भी नहीं मरते वो सूर्य की प्रभातकालीन किरणों से नष्ट हो जाते है | सूर्य को अर्घ देते समय साधक के ऊपर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती है | सूर्य को जल देते समय जल से भरे पात्र को छाती के बराबर ऊँचाई में रखना चाहिये और पात्र के उभरे भाग को तब तक देखते रहें जब तक कि जल समाप्त न होजाय | ऐसा करने से आँखों की रौशनी तेज होती है और कभी भी जीवन में मोतियाबिंद एवं अन्य आँखों से सम्बंधित रोगों की शिकायत नहीं होती है |