विवाह एक पवित्र संस्कार है, जानिए इसका कारण
वेदों के अनुसार दो शरीर, दो मन, दो ह्रदय, दो प्राण एवं दो आत्माओं का मिलन पवित्र संस्कार होता है | विवाह का अर्थ केवल एक दूसरे के शरीर का उपभोग करना नहीं बल्कि जीवन भर एक दूसरे का सुख-दुःख, हंसी-ख़ुशी आदि का एक दूसरे से तालमेल होता है |जो विवाह वेद मंत्रो से संपन्न होता है उसे ‘ब्रम्हा विवाह कहते है | भारतीय संस्कृति के अनुसार आठ प्रकार के विवाह प्रसिद्ध है – ब्रम्हा देव, आर्ण, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व,राछस और पैशाच | इन आठ प्रकार के विवाह में प्रथम चार विवाह को उत्तम एवं बाद के चार विवाह को निकृष्ट(खराब) माना गया है |
क्यों है विवाह के समय वर-कन्या का गठ बंधन (गठ जोड़) करना इतना महत्वपूर्ण
गठ बंधन को विवाह का प्रतीक रूप माना गया है | विवाह के दौरान फेरे लेते समय वर के कंधे पर सफेद दुपट्टा रखकर वधु के साड़ी के पल्लू से बाँधा जाता है, जिसका अर्थ है की अब दोनों एक दूसरे से जीवन भर के लिए बांध गये | गठ बन्धन के समय वर के पल्ले में सिक्का (पैसा), हल्दी, पुष्प, दूर्वा और अक्षत (चावल) रखकर गाँठ बाँधी जाती है | जिसमे सिक्के का अर्थ यह है कि धन पर किसी एक का पूर्ण अधिकार नहीं होगा बल्कि खर्च करने में दोनों की सहमति आवश्यक है | पुष्प (फूल) का अर्थ यह है कि वर-वधु जीवन भर एक दूसरे को देखकर प्रसन्न रहें | हल्दी आरोग्यता को दर्शाती है | दूर्वा का अर्थ यह होता है कि नव दंपत्ति जीवन भर कभी न मुरझाएं बल्कि दूर्वा की तरह सदैव हरे भरे रहें तथा अक्षत (चावल) मतलब अन्न यह संदेश है कि जो अन्न कमाये उसे अकेले नहीं बल्कि मिलजुलकर खायें | अक्षत अन्नपूर्णा का प्रतीक है अर्थात घर में अन्न का भण्डार भरा रहे |
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार विवाह के समय अग्नि परिक्रमा क्यों है इतनी मत्वपूर्ण
किसी के भी मन में यह विचार उत्पन्न हो सकता है कि अग्नि की ही परिक्रमा क्यों की जाती है ? जल का घड़ा रखकर उसका चक्कर भी तो लगाया जा सकता है | जल कि परिक्रमा कर के विवाह क्यों नहीं कराया जा सकता ? इसके विषय में विद्वानों का मत है कि जल कितना भी शुद्ध क्यों न हो खुले स्थान में रखते ही प्रदूषित होजाता है | वायु मंडल में विद्धमान जीवाणु उसमें प्रवेश कर ही जाते है |किन्तु अग्नि ना तो कभी दूषित हुई है और न होगी | अग्नि सदैव पवित्र रही है और रहेगी | इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कारण की यह अपनी दाहकता से हर वास्तु को शुद्ध बना देती है तो वह स्वयं कैसे अशुद्ध रह सकती है |
इसीलिए विवाह के समय वर-वधु अग्नि को साक्षी मानकर उसकी सात परिक्रमा करते है | सात बार परिक्रमा करने का का यह अर्थ माना जाता है कि वर-वधु एक दुसरे को सात जन्मों तक के लिए वरण करते है |
विवाह में अग्नि की परिक्रमा करते समय वधु के आगे रहने का कारण
स्वयं देवताओं ने नारी को प्रथम स्थान प्रदान किया है | नारी वर्ग सदैव अग्रपूज्य (आगे रहा है) | प्रमुख देवताओं के नामों का जप करते समय भी आप यही पाएंगे जैसे राधे-कृष्णा, सीताराम, गिरजाशंकर आदि | जब देवता भी नारी को अग्रणी मानते है तो हमें भी मन्ना चाहिए यही कारण है कि विवाह में अग्नि के फेरे लगते समय वादू आगे-आगे चलती है और वर उसके पीछे चलता है |