नासिका स्वर चिकित्सा एवं रोग उपचार
हमारी नाक में दो छिद्र होते है जिसमे एक दायीं ओर रहता है और दूसरा बायीं ओर रहता है | इन्ही छिद्रों के द्वारा हम सभी लोग श्वास लेते है जिसके माध्यम से वायु हमारे सारे शारीर में प्रवेश करती है एवं बाहर निकलती है | नाक के इन्ही दोनों छिद्रों को स्वर कहा जाता है | यह स्वर तीन प्रकार के होते है –
१, चंद्रस्वर – इस स्वर में बायीं नासिका द्वारा वायु निकलती है |
२, सूर्यस्वर – इस स्वर में दाई नासिका द्वारा वायु निकलती है |
३, सुषुमणास्वर – इस स्वर में दोनों नासिका छिद्रों से वायु निकलती है |
अधिकतर हम सभी की नासिकाओं से कभी चंद्रस्वर निकलता है तो कभी सूर्या स्वर | सुषुमणास्वर बहुत ही कम समय के लिए निकलता है | योग के कथन अनुसार यदि हम इन स्वरों को नियंत्रित करना सीख लें तो अनेक रोगों से मुक्त हो सकते है और एक स्वस्थ्य एवं सुखी जीवन जी सकते है | आइये जानते है कि सूर्यस्वर, चंद्रस्वर और सुषुमणास्वर में क्या अंतर है |
सूर्यस्वर
१, यह स्वर गरम माना गया है |
२, सर्दी, जुकाम, खाँसी, दमा, निमोनिया, अपच, निम्न रक्तचाप, जोड़ों के दर्द, गठिया, पक्षाघात एवं पोलियो में काम आता है |
३, भोजन हमेशा इसी स्वर को चलाकर करना चाहिये |
४, दीर्घशंका ( मॉल विसर्जन) के दौरान इस स्वर को चलाकर जाना चाहिये |
५, कठिन यात्रा, महनत के काम, व्यायाम, स्नान और शयन के वक्त इस स्वर को चलाना लाभदायक होता है |
६, बरसात एवं ठंड के मौसम में इस स्वर को ज्यादा से ज्यादा चलाना चाहिये |
चंद्रस्वर

१, यह स्वर ठंडा माना गया है |
२, पित्तजनित रोगों में, गर्मी, खुश्की, दिल की धड़कन या घबराहट, उच्चरक्तचाप, मूत्र में जलन, थकावट, बुखार एवं लूमें काम आता है |
३, लघुशंका (मूत्र-विसर्जन) के समय इस स्वर को चलाना लाभदायक होता है |
४, यात्रा, भजन, साधन के वक्त इस स्वर को चला लेना चाहिये |
५, गर्मी के मौसम में इस स्वर को अधिक से अधिक चलाना अति उत्तम होता है |
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